कविता : मैं भी रखूँगा एक उपवास
Friday 22 October 2021
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मैं भी रखूँगा एक उपवास, होटो पर हो सदा मुस्कान
हे! आसमान के उजले चाँद ,नही तू मेरे चाँद सा सुन्दर
नित्य आता है नित्य जाता है, दमकने की तू करे चेष्टा
तुझसे ज्यादा रोशन मुखड़ा,दिखता मेरे चाँद के अन्दर।
मैं भी रखूँगा एक उपवास, लम्बी उम्र हो मेरे चाँद की
कभी घटता न कभी बढ़ता, सुन्दरता है मेरे जान की ।
चाँद सा सूरत मुखड़ा उसका,जैसे मेरा जान का टुकड़ा
जीवन भर ये साथ निभाये,हर गम को ये यूँ सह जाये।
मैं भी रखूंगा एक उपवास,जीवन सुंदर हो मेरे चाँद की
चेहरे पर हो हरपल मुस्कान,गम न आये कभी भी पास।
जीवन की नैया नित चलती , चलाये उनको दो पतवार
साथ इसका मिला है ऐसा, रहती ख़ुशियाँ मेरे साथ।
मैं भी रखूँगा एक उपवास, पूरा हो हर एक अरमान
मेरे चाँद की भव्या चाँदनी , रोशन हो सारा संसार
मिश्री जैसे बात से झलके,मुखड़ा पुष्प सा खिलता
मधुर सुगंध से भरदे खुशियाँ, जीवन मेरा बना सार।
मैं भी रखूँगा एक उपवास, मेरा चाँद रहे पूरा हरक्षण
कभी रहे न विरह वेदना, जीवन सारा इस पर अर्पण
जब श्याम यह चाँद दमकता, जीवन मे बरकत लाये
मेरे चाँद के आगे जैसे,गगन का चाँद फीका हो जाये।
मैं भी रखूँगा एक उपवास ,जब आएगा करवा चौथ
निर्जला हो या निराहार हो, ये सब मैं कर जाऊँगा
मेरे चाँद का चेहरा देखकर, उपवास पूरा कर जाऊँगा
मेरे चाँद के खातिर जी, मैं इतना तो कर पाउँगा।
कवि/ लेखक
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
मोबाइल 9893573770
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