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बच्चों में मोबाइल की लत से बढ़ता जिद्दीपन-चिडचिडापन बन सकता है मानसिक विकास में बाधक

बच्चों में मोबाइल की लत से बढ़ता जिद्दीपन-चिडचिडापन बन सकता है मानसिक विकास में बाधक

 


_अपने भीतर अथाह जानकारियों का सागर समेटने वाला मोबाइल जो देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों को संवारना और निखारना था, वही उनका दुश्मन बन बैठा है।_

सुनैना की ढाई साल की बेटी सुहानी मोबाइल पर कार्टून देखे बिना खाना नहीं खाती है। खाने की प्लेट सामने देखते ही वह हाथ में मोबाइल पकड़ लेती है। टप्पू 4 वर्ष का बालक है, उसे मोबाइल में कार्टून एवं वीडियो देखना अच्छा लगता है, उसे मोबाइल नहीं मिलता है तो घर के कोई भी  सामान को फेक कर अपना गुस्सा दिखता है एवं रो-रोकर अपनी हालत ख़राब कर लेता है। रजिया की एक साल की बेटी नाज जब भी रोती थी, रजिया मोबाइल में कार्टून या वीडियो लगाकर दे देती थी जिससे वह शांत हो जाती थी, अब नाज बगैर मोबाइल के रोना बंद की नहीं करती। हमारे आसपास ऐसे कई उदाहरण घर-घर में देखने को मिल जायेंगे। “मोबाइल” संचार क्रांति के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि के रूप में दुनियाभर छाया है, माना कि यह मनुष्य के लिए बड़ी काम की चीज है, परन्तु बच्चों के लिए यह गेजेट्स नुकसानदायक सबब बन रहा है। इस अद्भुत खोज के अधिक प्रयोग से बड़ों से ज्यादा बच्चो में मानसिक तनाव हो रहे हैं। मोबाइल का अधिक इस्तेमाल बच्चो के सेहत के लिए बहुत खतरनाक है, इससे निकलने वाला रेडियेशन बच्चों के दिमाग पर असर डालता है, जिस वजह से बच्चों के दिमाग में नकारात्मक प्रभाव बढता जा रहा है और सबसे ज्यादा नुकसान यह आंखों के लिए है। इसलिए बच्चों को मोबाइल का अधिक इस्तेमाल करने न दें, नहीं तो बच्चो में मानसिक तनाव बढ़ सकता है। बच्चों में मोबाइल की लत लगने के कारणों को हम बहुत हद तक माता-पिता ही होते है, बच्चों को खाना खाने के लिए उन्हें मोबाइल देने का लालच देना,बच्चों को प्यार-दुलार के चलते मोबाइल देना। रोते बच्चों को बहलाने के लिए उन्हें मोबाइल देकर चुप कराना,माता-पिता का यह सोचना कि कम उम्र में मोबाइल ऑपरेट करना बच्चे के विकास के लिए लाभकारी होगा, बच्चों को खुद से दूर रखने और किसी विशेष काम को करने के लिए बच्चों को मोबाइल देकर बहलाना।

विशेषज्ञों के मुताबिक 6 माह के नवजात तरह-तरह के चित्र और रंगों को देखकर आकर्षित होते हैं। यही कारण है कि मोबाइल के प्रति बच्चों का रुझान बढ़ जाता है। मोबाइल से निकलने वाली रोशनी और उस पर नजर आने वाले चित्र बच्चों को अपनी ओर खींचते हैं। साथ ही मोबाइल की आवाज भी बच्चों में उसके बारे में जानने और उसे छूने की उत्सुकता पैदा करती है। दरअसल, कम उम्र से ही जिन बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन आ जाता है, उन्हें इसकी लत लग जाती है। इस कारण वो हर समय मोबाइल में ही लगे रहते हैं। आलम यह हो जाता है कि उन्हें खाने-पीने और सोने तक का होश नहीं रहता। मोबाइल की लत के कारण बच्चा और किसी भी काम में ध्यान नहीं देता। वहीं, समाजिक और व्यवहारिक रूप से भी वह लोगों से नहीं जुड़ पाता। नतीजन वास्तविक रूप से बच्चे में उम्र के हिसाब जो विकास होना चाहिए, उसमें कहीं न कहीं कमी आ जाती है। बच्चे मोबाइल में गेम खेलते हैं। नई-नई चीजें देखते हैं। आज-कल तो कार्टून और अन्य कार्यक्रम भी उन्हें मोबाइल पर ही मिल जाते हैं। इनमें अधिक रूचि होने के कारण वो देर रात तक जागते रहते हैं। इस आदत की निरंतरता अनिद्रा की समस्या को जन्म देती है। बच्चे के द्वारा मोबाइल फोन का लगातार उपयोग उसके व्यवहार में बदलाव का भी कारण बन सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसा माना गया है कि मोबाइल की लत बच्चे में किसी अन्य काम में उसका ध्यान केंद्रित नहीं होने देती। ऐसे में अगर आप उससे एकदम से मोबाइल दूर करेंगे, तो हो सकता है कि उसके मन में आपके प्रति नकारात्मक भाव पैदा हों, वह चिड़चिड़ा भी हो सकता है या फिर मोबाइल को पाने के लिए नाराजगी (रोकर या खाना छोड़कर) जाहिर करे।

बच्चों की मोबाइल लत के लिए कई डॉक्टर माता-पिता को ही जिम्मेदार मानते हैं। बच्चे को समय नहीं दे पाए तो उसे गैजेट दे दिया उसकी कोई चीज पूरी नहीं कर पाए तो उसे गैजेट दे दिया। ऐसे में बच्चे को कहीं न कहीं ये लगने लगता है कि पॉवर अब हमारे हाथ में हैं आज हमें इस चीज के लिए गैजेट मिला है तो कल किसी दूसरी चीज के लिए कुछ और मिल जायेगा अब तो हर चीज में मेरी सुनवाई हो जाएगी। देखिये अगर आपके पास परिवार है तो आपको समय देना पड़ेगा। बच्चों के मोबाइल प्रेम के पीछे अभिभावक ही जिम्मेदार हैं। बच्चे को सोने से आधा घंटे पहले टीवी या मोबाइल न देखने दें, वर्ना वही उसके सपने में आएगा। बच्चों की जितनी अच्छी नींद आएगी, उनके हार्मोन वैसे ही प्रक्रिया करेंगे और वैसे ही बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास होगा।" ये सब रोकने के लिए हमें एक जागरूकता लानी पड़ेगी क्योंकि आज कल न्यूक्लियर फैमिली है। माता-पिता दो लोग ही होते हैं, तीसरा बच्चा जो कि फोन लेकर बैठा रहता है तो माता-पिता को भी बताना पड़ेगा कि कृपया एक दूसरे की मदद करें। जब माँ काम करे तो पिता बच्चे का ख्याल रखे उसे मोबाइल फोन देकर छुटकारा न पायें।

 

_“3 साल तक के बच्चे को किसी भी तरह की स्क्रीन टीवी-मोबाइल से दूर रखें। बच्चे के साथ ज्यादा वक्त बिताएं ताकि उससे मोबाइल पर समय न बिताना पड़े। मोबाइल लत के लक्षण- भूख कम लगना, चिड़चिड़पान, नींद का कम आना, झगड़ालू, किसी चीज में मन न लगना, गुस्सा आना।”_

बच्चों से मोबाइल की लत छुड़ाई जा सकती है, इसके लिए मोबाइल गेम की जगह बच्चे को आउटडोर गेम खेलने के लिए प्रेरित करें। इससे उसका शारीरिक विकास तो होगा ही, साथ ही वो सामाजिक तौर पर भी लोगों से जुड़ेंगे। जितना हो सके बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं। वजह यह है कि इस समय बच्चों को सबसे ज्यादा मां-बाप के प्यार और दुलार की जरूरत होती। आपके साथ रहने से वह मोबाइल से अपने आप दूर हो जाएगा।  बच्चों को प्यार से समझाएं कि मोबाइल उनके लिए नुकसानदायक है। साथ ही उनके शौक के हिसाब से बच्चों को डांस, म्यूजिक और पेटिंग जैसे कामों को करने के लिए प्रेरित करें, जो उनके बेहतर विकास के लिए फायदेमंद साबित होगा।

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श्याम कुमार कोलारे

सामाजिक कार्यकर्त्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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