बच्चों को संस्कारित करना माता-पिता की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी
_“बच्चों में संस्कार, नैतिक शिक्षा, अनुशासन और व्यावहारिक ज्ञान समाज में उनको एक अच्छे इंसान बनने के लिए अहम भूमिका निभाता है।
जब बच्चा जन्म लेता है तो एक अबोध बालक होता है और जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, उसके परिवार का अनुशरण करते हुए हुए वह अपना आचरण करता है। बच्चों की शिक्षा-दीक्षा एवं शुरुवाती सीख अपने घर एवं आस-पड़ोस के वातावरण से ही सीखता समझता है। बच्चे का परिवार ही पहली पाठशाला होती है सबसे ज्यादा बच्चा अपने घर पर ही सीखता है। माता-पिता एवं परिवार के लोग ही उनके प्रथम गुरु होते हैं; इसलिए बच्चों को पुस्तकीय शिक्षा के साथ के साथ-साथ संस्कार, अनुशासन एवं नैतिक शिक्षा बहुत ज्यादा जरूरी हो जाती है।नैतिक शिक्षा, अनुशासन और संस्कार समाज में उनको एक अच्छे इंसान बनने के लिए अहम भूमिका निभाता है। अधिकतर देखा गया है कि बच्चे उच्च कक्षाओं, एवं उच्च शिक्षा तक पहुंच जाते हैं पर उनमें संस्कार, अनुशासन की कमी होती है; इस कारण से समाज में सामंजस बैठाने में अपने आप को सवित नहीं कर पाते हैं। शहरो और एकल परिवार में बच्चे का आदर्श एवं नैतिक शिक्षा में जानने और सीखने का एकमात्र जरिया अपने माता-पिता ही होते हैं। शहर की भागदौड भरी जिन्दगी में बच्चों में संस्कार को सही प्रकार से सिखाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। बड़े बच्चों के लिए अपने घर से ज्यादा अपने आस-पड़ोस, टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर, सोशल मीडिया आदि के संपर्क में आने से इन सब की बाते एवं अनुशरण करते है जो वास्तविकता से काफी परे होती है। सोशल मीडिया और पश्चात संस्कृति का अनुशरण से सभी अपने जीवन को एक नई दिखा की और ले जा रहे है, हम यह नहीं कह सकते कि यह बहुत सही राह है लेकिन संस्कार, अनुशासन और नैतिक शिक्षा से भरी रह बहुत की सकारात्मत दिशा प्रदान करेगी इसे कोई नकार नहीं सकता। माता-पिता और घर के अन्य सदस्य,पड़ोस, मित्र, स्कूल आदि से हमें बहुत कुछ सिखने के लिए मिलता है, इन सब में संस्कार का स्थान भी एक महत्वपूर्ण स्थान में रखा जाना चाहिए। इसकी शुरुआत हमें घर से ही करनी चाहिए। बच्चों में कुछ गुण जो उन्हें सफलता के उच्च शिखर तक पहुँचाने के लिए सीडी बनता है उसको निखारने का प्रयत्न करना नितांत आवश्यक है।
*माता-पिता का सम्मान* - कोई भी माता-पिता कभी भी बच्चों का अहित नहीं चाहते हैं, बच्चों के हित में जितना हो सके हर एक माता-पिता अपना सर्वस्व लगा देते हैं। माता-पिता हमेशा बच्चों को हमेशा आगे बढ़ते देखना चाहते है। माता-पिता पिता की अपेक्षा होती है कि बच्चा उसकी बाते माने उनका भली-भांति सम्मान करें, उनकी कोई भी बात ऐसी न हो जिससे उनको दुख हो और उनके सम्मान को ठेस पहुंचे। ये सम्मान की भावना हमारे घर से ही शुरू होती है यदि हम अपने माता-पिता का सम्मान करेंगे तो इसका प्रभाव हमें बाहर समाज में भी देखने को मिलेगा। यह सम्मान बच्चों के उच्चतम शिखर तक पहुंचने के लिए उनका मान सम्मान एवं उनकी तरक्की के लिए आगे सहायक होता है। जो बच्चा जितना संस्कारित एवं लोगों का सम्मान करने वाला होता है लोग उनको उतना ही मानते हैं एवं हर बात को पूर्ण करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। जो अपने माता-पिता का सम्मान करता है समाज भी उसका सम्मान करता है एवं उसको सकतात्मक द्रष्टि से पूछता है,उसको हमेशा इज्जत का दर्जा मिलता है; इसलिए माता-पिता का सम्मान बच्चे के लिए एक आदर्श गुण है जो उसके लिए महत्वपूर्ण एवं एक उत्कर्ष जीवन के लिए सहायक होता है।
*सत्यता और ईमानदारी*- सत्यता और ईमानदारी हर जगह पूजी जाती है। किसी भी काम के लिए हर व्यक्ति चाहता है कि कोई भी काम पूर्ण सत्यता, निष्ठा और ईमानदारी से किया जाए। जिस मनुष्य के जीवन में सत्य, निष्ठा और ईमानदारी होती है वह समाज में हमेशा सम्मान पाता है। बच्चों में सत्य, निष्ठा एवं ईमानदारी के गुण का संस्कार होना एक बहुत अच्छा और महत्वपूर्ण गुण है। माता-पिता को चाहिए ये गुण बचपन से ही डाला जाना जाए ताकि बड़े होकर समाज में एक ईमानदारी पूर्वक समान से अपना जीवन यापन कर सकें।
*प्रेम की भावना*- प्रेम एक ऐसा मंत्र है जिससे सभी का मन जीता जा सकता है। हर कोई प्रेम की अनुभूति चाहता है यदि हम किसी से प्रेम पूर्वक और सम्मान पूर्वक बातें करें, आदर दे तो वह भी हमें सम्मान एवं प्रेम पूर्वक व्यवहार करेगा। बच्चों में प्रेम की भावना का प्रादुर्भाव बचपन से ही होना चाहिए। बड़े से बड़े दुश्मन को भी प्रेम से जीता जा सकता है प्रेम का गुण बच्चों को एक समृद्धि जीवन के लिए अग्रसर करता है। आदरपूर्वक प्रेम, सम्मान की भावना बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण गुण है।
*सहयोग की भावना*- परिवार एवं समाज में रहते हुए हमें हर जगह एक दूसरे की सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। यदि हम दूसरों का सहयोग करेंगे तो दूसरे भी हमारा सहयोग करेंगे, इसलिए सहयोग की भावना होना नितांत आवश्यक है।मनुष्य में जितना ज्यादा सहयोग की भावना होगी वह उतना ही सफलता के आयाम पायेगा। कहा जाता हैं कि हर किसी की सफलता के पीछे किसी न किसी का हाथ होता है; यदि हम खुद भी दूसरों के लिए सहयोग की भावना रखें तो निश्चित रूप से हमारे लिए भी सहयोग के हाथ उठेंगे। सहयोग की भावना अपने आप में एक बहुत बड़ा नैतिक गुण हैं जिसे माता-पिता को बचपन से ही बच्चों के जीवन में उतरने और सिखाने का कार्य कारना चाहिए ।
*सहनशक्ति*- परिवार एवं समाज की बहुत सारी जिम्मेदारी एवं जीवन में भागदौड़ के चलते मनुष्य को कर्तव्य पूर्वक निभानी होती है, कई बार अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए कुछ ऐसा भी हो जाता है कि कुछ विरोधी लोगो का टीका टिप्पणी का भागी बनना हो सकता है। वस्तुतः जो कोई काम करता है उससे कुछ गलतियां होना स्वाभाविक है; वैसे भी मनुष्य गलतियों का पुतला है, वह गलतियाँ करके बहुत कुछ सीखता है। जीवन में ऐसे बहुत सारे पड़ाव आते हैं जब हमें लोगों को सुनना पड़ता है, इस समय हमारे पास सहनशक्ति का गुण होना आवश्यक हो जाता है। जिससे कि उस परिस्थिति से समझने के लिए हमें सही रास्ता मिले सके। कई बार अधीरता बस ऐसा गलत हो जाता है कि बाद में पछतावा ही हाथ लगता है, कोई भी काम करने से पहले सहनशक्ति पूर्वक हमें उसे समझना चाहिए और उसके बाद ही उसका प्रति देना अपने आप में बहुत ही प्रबल है इस शक्ति के माध्यम से मनुष्य अपना आत्मविश्वास और आत्मसम्मान पाता है।
*उज्जवल चरित्र*- चरित्र ऐसा गुण है जिससे मनुष्य को समाज में एक प्रतिष्ठित नाम दिलवाता है, चरित्रवान मनुष्य हर जगह सम्मान पाता है चरित्रवान होना और इसे बनाए रखना यह एक बहुत ही उत्तम गुण है। हर मनुष्य चाहता है कि वह जिस व्यक्ति के संपर्क में हैं, जिस व्यक्ति के साथ है वह व्यक्ति उज्ज्वल चरित्रवान होना चाहिए। बच्चों में बचपन से ही चरित्र निर्माण के गुण के लिए प्रेरित करना नितांत आवश्यक है।
*बड़े बुजुर्गों का सम्मान एवं उनके प्रति सकारात्मक सोच*- जो व्यक्ति बड़े बुजुर्गों का सम्मान एवं उनके प्रति सकारात्मक सोच रखता है वह व्यक्ति घर, समाज और हर जगह प्रशंसा पाता है, बड़े बुजुर्ग हमारे लिए एक उत्तम शिक्षा के मार्गदर्शक होते है, उनसे हमें बहुत सारी शिक्षा मिलती है। बड़े बुजुर्ग उस पेड़ की छांव की तरह है जिस पेड़ की छांव के नीचे पूरा परिवार शांति प्राप्त करता है एवं सुख की अनुभूति करता है यदि उन बड़े बुजुर्गों का सम्मान और उनके प्रति सकारात्मक सोच रखेंगे तो निश्चित रूप से उनसे हमें जो सीख मिलेगी, हमारे जीवन के लिए बहुत ही लाभदायक होगी । इसलिए बच्चों में बड़े बुजुर्गों के प्रति सम्मान एवं उनके प्रति सकारात्मक सोच के लिए हमें हमेशा उनको प्रेरित करना चाहिए।
बच्चे को घर पर महापुरुषों व देशभक्तों की जीवन गाथाएं उनके संघर्ष व उनके प्रेरक प्रसंगों को सुनाएं जिससे की बच्चे के मन में उनके आदर्शों के प्रति जागरूकता उत्पन्न हो और वे उनके आदर्शों को अनुशरण करने के लिए सोच सके। उन्हें ऐसे समाजसेवको के बारे में बताये जिन्होंने मानवता और समाज उत्थान के लिए उल्लेखनीय काम किया हो। इससे आपका बच्चा प्रेरित होगा और उनके पदचिह्नों पर चलने की कोशिश करेगा।
बच्चे को नैतिक शिक्षा,व्यावहारिक ज्ञान, अनुशासन आदि शिक्षा देने से पहले ये भी जरूरी है कि आप खुद भी नैतिक हों। अगर आपके अंदर खुद नैतिकता नहीं है, तो आप भला कैसे बच्चे को उसके बारे में बताएंगे। बच्चा तो आपका ही अनुकरण करेगा। इसलिए पहले खुद भी नैतिक होने की जरूरत है। यह भी जरुरी है कि स्कूली पाठ्यक्रमों में अच्छे से नैतिक शिक्षा को शामिल किया जाए और इसे बड़ी तल्लीनता से बच्चों को सिखाया जाए। अन्य विषयों की तरह इसको भी अनिवार्य किया जाये। माता-पिता का इस कार्य में सबसे ज्यादा भूमिका हो जाती है कि वह बच्चों में आदर्श शिक्षा, व्यावहारिक ज्ञान, अनुशासन और नैतिक शिक्षा का महत्वपूर्ण जिम्मेदारी की तरह पूर्ण किया जाये, तो निश्चित रूप से एक उन्नत समाज एवं सफल मानवता के लिए सफलता के नए आयाम की ओर ले जाने में एक कड़ी का काम करेगा।
लेखक
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्त्ता, छिन्दवाडा(म.प्र.)
shyamkolare@gmail.com
मोबाइल 9893573770
0 Response to "बच्चों को संस्कारित करना माता-पिता की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी"
Post a Comment