शिक्षक होता है उन्नत राष्ट्र निर्माण की धुरी, शिक्षा करती है सभ्य समाज निर्माण
“शिक्षक से ही होता है, सभ्य राष्ट्र निर्माण
बालक को बनता है, शिक्षा से महान
गुरु का दर्जा मिला है इनको, ईश सामान
शिक्षक तरासे शिष्य को, कर जाए गुणवान”
हमारे देश में शिक्षक को गुरु का दर्जा देकर उन्हें भगवान की तरह आदर से पूजा जाता है, आखिर ऐसा हो भी क्यों न! शिक्षक ही ऐसा शख्स है जो बापलपन से बच्चों में शिक्षा का बीज बोता है और उसे समाज में जीने के लिए बहुआयामी कौशल प्रदान करता है l शिक्षा का प्रमुख आधार शिक्षक ही होता है। शिक्षक न केवल विद्यार्थी के व्यक्तित्व का निर्माता, बल्कि यह राष्ट्र का निर्माता भी होता है। किसी राष्ट्र का मूर्तरूप उसके नागरिकों में ही निहित होता है। किसी राष्ट्र के विकास में उसके भावी नागरिकों को गढ़ने वाले शिक्षकों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। अनादिकाल से शिक्षक की महत्ता का गुणगान उसके द्वारा प्रदत्त ज्ञान के कारण ही होता आया है।
ऐसे ज्ञानी गुरुओं के बल पर ही हमारे राष्ट्र को जगतगुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज भी शिक्षक उसी निष्ठा से विद्यार्थियों के भविष्य निर्माण करके देश के भविष्य को सँवार सकते हैं। शिक्षक की भूमिका केवल छात्रों को पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है। छात्रों को पढ़ाई के अलावा उन्हें सामाजिक जीवन से सम्बन्धित दायित्वों का बोध कराना तथा उन्हें समाज के निर्माण के योग्य बनाना भी शिक्षक का ही दायित्व है। आजादी के बाद शिक्षक के सार्थक पहल की गई, देश को उन्नत बनाने के लिए शिक्षक का एक महत्वपूर्ण भूमिका रही हैl शिक्षक अपने आपको समाज के प्रति समर्पण भाव के कार्य करते थे जिससे आज देश में शिक्षा का ये मुकाम हासिल कर पाया हैl आज ऐसा कोई भी स्थान शिक्षा से अछूता नहीं रहा है l देश के कोने-कोने में शिक्षा की अलख जलने में शिक्षको का महत्वपूर्ण योगदान रहा है l
बच्चों के प्रति शिक्षको का आत्मीय जुड़ाव - 90 के दशक तक शिक्षक अपने विद्यालय के पास या उसी गाँव में रहकर बच्चों को अध्यापन कार्य कराया करते थे, गाँव में ही रहकर बच्चों को पढ़ाना, उनके माता-पिता से दैनिक बातचीत करने से बच्चों के प्रति आत्मीय जुडाव होता थाl शिक्षक द्वारा बच्चों को बड़ी आत्मीयता के साथ किताबी शिक्षा, व्यवाहरिक शिक्षा, नैतिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा के लिए बच्चों को तैयार किया जाता थाl चूँकि शिक्षक गाँव में रहते थे तो सभी बच्चों एवं अभिभावकों से उनका भावनात्मक जुड़ाव हो जाता था, शिक्षक उनके भविष्य सुधार के लिए भावनात्मक रूप से जुड़े होते थेl शिक्षक गाँव में सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा व्यक्ति होता था, लोग उन्हें आदर्श मानते थे शिक्षक भी अपनी गरिमा को बनाये रखते थे एवं बच्चों को सही मुकाम तक पहुचने में अपना पूर्ण ज्ञान झौक देते थेl यही कारण है कि शिक्षक समाज की धुरी है, शिक्षक बच्चों में जैसा संस्कार, व्यावहारिक ज्ञान से उन्नत करेगा, वह विद्धार्थी समाज निर्माण के लिए अग्रसर होगा l
शिक्षक का समाज के प्रति दायित्व – शिक्षक अपने विद्यालय के बच्चों की शिक्षा तक सीमित नहीं होता वल्कि वह अपने विद्यालय एक परिवेश आसपास के समाज के लिए एक आदर्श छवि के रूप में प्रस्तुत होता है, बच्चों से लेकर बड़ों तक उन्हें अनुशरण करते है l इसलिए शिक्षक का एक प्रमुख दायित्व हो जाता है कि वह बच्चों के साथ-साथ मैं समाज से जुड़कर सामाजिक बदलाव के लिए अग्रसर होl शिक्षक का परम कर्त्तव्य है कि वह अपनी शिक्षा के द्वारा छात्रों में आदर्श नागरिक के गुणों को विकसित करे, जिससे छात्र अपने कर्तव्यों और अधिकारों को भली प्रकार समझ सके और जीवन में उनका समुचित उपयोग कर सके। आदर्श नागरिक ही आदर्श राष्ट्र के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
शिक्षक द्वारा सभ्य समाज का निर्माण– एक कुशल शिक्षक ही प्रत्येक छात्र को सभी विषयों की सर्वोत्तम शिक्षा देकर उन्हें एक अच्छा डॉक्टर, इंजीनियर, न्यायिक एवं प्रशासनिक अधिकारी बनाने के साथ–साथ उसे एक अच्छा इन्सान भी बनाता है। सामाजिक ज्ञान के अभाव में जहाँ एक ओर छात्र समाज को सही दिशा देने में असमर्थ रहता है, वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में वह गलत निर्णय लेकर अपने साथ ही अपने परिवार, समाज, देश तथा विश्व को भी विनाश की ओर ले जाने का कारण बन सकता है।
शिक्षक समाज के लिए प्रेरणास्रोत –जीवन में प्रगति मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए उचित दिशा–निर्देश की आवश्यकता पड़ती है। यह निर्देशन कई प्रकार का होता है; जैसे–व्यक्तिगत निर्देशन, शैक्षिक निर्देशन तथा व्यावसायिक निर्देशन। व्यक्तिगत निर्देशन द्वारा व्यक्ति की व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न किया जाता व्यावसायिक निर्देशन द्वारा व्यक्ति की रुचि, योग्यता और क्षमता की जाँचकर उसी के अनुरूप उसे व्यवसाय चुनने का परामर्श दिया जाता है। एक शिक्षक अपने छात्रों को इन सभी विषयों में उचित दिशा–निर्देश देकर देश का सफल नागरिक बनने में उनकी सहायता करता है।
शिक्षक आरम्भ से ही विद्यार्थियों की नींव मजबूत करके सुन्दर–सभ्य समाज का निर्माण करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करे। इस प्रकार शिक्षक एक सुसभ्य एवं शान्तिपूर्ण राष्ट्र और विश्व का निर्माता है। एक शिक्षक को अपने सभी छात्रों को एक सुन्दर एवं सुरक्षित भविष्य देने के लिए तथा सारे विश्व में शान्ति एवं एकता की स्थापना के लिए उनके कोमल मन–मस्तिष्क में भारतीय संस्कृति और सभ्यता के रूप में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के विचाररूपी बीज बोने चाहिए।
“शिक्षक मिलियों ऐसा, नित्य सींचें ज्ञान।
बनायें ऐसो पारखी, जग जौहरी सामान।।”
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
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