लेख - छोटे बच्चों की शुरूआती शिक्षा में आया पिछड़ापन को दूर करने हेतु, करना होगा उचित प्रबंधन
लॉकडाउन के दौरान बच्चों की पढ़ाई में काफी बदलाव देखने को मिला है। जहाँ बच्चो की पढ़ाई के लिए सभी स्कूल के दरवाजे बंद थे वही बच्चे को खुले में खेलने की भी आजादी छीन गई थी। कोविड-19 महामारी के कारण स्कूल से विमुख होने के बाद बच्चों की शिक्षा में अचानक बहुत बड़ा बड़ा बदलाव किया गया जिसके लिए कोई भी तैयार नही था, बच्चों को तो ये कोई डराबना सपने से कम नहीं था। घर में जहां बच्चे अपने माता-पिता, अभिभावक के साथ रहे, घर पर माता-पिता अभिभावकों से उन्हें जो अल्प सहयोग मिला भी तो भी उन्हें पढ़ने के लिए काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा है। शिक्षक एवं मार्गदर्शक के बगैर बच्चों को स्वअध्ययन के लिए मजबूर होना पड़ा। बड़े बच्चों को भी स्व अध्ययन पूरा करना कोई चुनौती से कम नहीं था परन्तु स्कूल एवं शिक्षक के बगैर पढ़ाई करना मानो आसमान से तारे तोड़कर लाना जैसा था। छोटे एवं शुरूआती स्कूल प्रारंभ करने वाले बच्चों के लिए स्कूल की पढ़ाई यह एक सपना जैसा था,आज निजी स्कूलों का पढ़ाई के क्षेत्र में काफी प्रभाव है, वह बच्चों को पूर्व प्राथमिक कक्षाओं से की उचित वातावरण एवं सीखने के कौशल एवं उनका संज्ञानात्मक ज्ञान पर काफी कार्य करते है, इसलिए बच्चों का नामांकन पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में तीन वर्ष से ही ले लेते है। परन्तु पिछले 2 वर्षों में इन बच्चों का स्कूल में नामांकन बहुत कम हुआ है या हुआ भी है तो उनको स्कूल का मुह देखने को नही मिला है। स्कूल उनके लिए एक परी की कहानी जैसा किस्सा है।
विश्वस्तर पर ‘अर्ली इयर्स’ (0-8 आयु वर्ग) बच्चों के विकास जैसे संज्ञानात्मक विकास, शारीरिक विकास एवं सामाजिक और भावनात्मक विकास का सबसे महत्वपूर्ण चरण माना गया है। दुनिया भर में किए गए अनुसंधान यह बताते हैं कि छोटे बच्चों के उपर्युक्त विकास के लिए प्रारंभिक वर्षों में यदि उनको विकास अनुकूल वातावरण और उपयुक्त संसाधन मिलें तो बच्चों को आगे विद्यालय और दैनिक जीवन में बहुत लाभ होता है । परन्तु अन्य निम्न- एंव मध्य-आय वर्गीय देशों की तरह भारत में भी, छोटे बच्चों के लिए पूर्व-प्राथमिक विद्यालयों की सुविधा, इन विद्यालयों तक बच्चों की पहुँच, नामांकन की स्थिति व उनके लिए कुछ महत्वपूर्ण विकासात्मक कौशलों की वृद्धि जो आगे उनके विद्यालय के और दैनिक जीवन के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीतियाँ यह सिफारिश करती हैं कि 4 और 5 आयु वर्ग के बच्चों को पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं में होना चाहिए । इस आयु में बच्चों को विभिन्न प्रकार के कौशल जैसे संज्ञानात्मक कौशल, सामाजिक और भावनात्मक कौशल के साथ ही औपचारिक स्कूली शिक्षा के लिए आवश्यक वैचारिक आधार विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ।बाल विकास विशेषज्ञ और अनुसंधान यह बताते हैं की 4 से 5 वर्ष में बच्चों में सभी कार्यों को करने की क्षमता में वृद्धि होती है ।
एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) 2019 'अर्ली इयर्स' के आंकड़ों से पता चलता है की संज्ञानात्मक कौशल के विकास का प्रभाव बच्चों की प्रारंभिक भाषा और गणित के कार्यों को करने की क्षमता में भी देखा जा सकता है । इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि बच्चों को पढ़ाते या सिखाते समय खेल-आधारित गतिविधियों पर ध्यान देने से बच्चों में सशक्त याद्दाश्त, तार्किक व रचनात्मक सोच, समस्या समाधान जैसे संज्ञानात्मक कौशलों का विकास होता है जो इस आयु में किताबी/विषय ज्ञान से अधिक लाभकारी है । विद्यालय की शिक्षा के प्राथमिक वर्षों में बच्चों में पढ़ने और गणित करने की बुनियादी क्षमताओं को मजबूत करना चाहिए ताकि आगे की पढ़ाई व जीवन के लिए यह एक अच्छी नींव साबित हो सके । यह महत्वपूर्ण है कि पाठ्यक्रम और कक्षा में की जाने वाली गतिविधियाँ इस प्रगति को ध्यान में रखते हुए विकसित की जाएँ । अब हमें यदि बच्चों को माता-पिता एवं अभिभावकों के साथ शिक्षक की भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होगी की बच्चो के ये दो वर्षो के गेप को पूरा करने के लिए एक नए सिरे से योजना बनाने की एवं इस पर कार्य करने की आवश्यकता है जिससे बच्चों को इन उम्र में सीखने की क्षमताओं का विकास किया जा सके।
आंगनवाड़ियाँ बहुत बड़े अनुपात में छोटे बच्चों के लिए पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं में जाने से पहले उन्हें विभिन्न सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं । इन आंगनवाड़ियों को सभी बच्चों को शामिल करने और 3 और 4 वर्ष के बच्चों के लिए उपयुक्त स्कूल रेडीनेस गतिविधियों, कार्यक्रम का संचालन करने के लिए और सशक्त की आवश्यता होगी ।असर 2019 'अर्ली इयर्स' के आंकड़ों से दिखता है कि संज्ञानात्मक विकास, प्रारंभिक भाषा और गणित एवं सामाजिक और भावनात्मक विकास में बच्चों के प्रदर्शन पर उनकी आयु का भी प्रभाव है, इसलिए बड़े बच्चे, छोटे बच्चों की तुलना में अधिक सवाल सही हल कर पाते हैं । कम आयु के बच्चों को विद्यालय में नामांकित कर प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाने से उन्हें सीखने में नुकसान पहुँचता है जिसे दूर करना मुश्किल होता है । बच्चों के प्रारंभिक भाषा और गणित के प्रदर्शन पर उनके संज्ञानात्मक कौशल का प्रभाव दिखाई देता है । इससे यह संकेत मिलता है कि प्रारंभिक वर्षों में बच्चों को सिखाने में संज्ञानात्मक कौशल के विकास पर ध्यान देना चाहिए नाकि किताबी, विषय-आधारित ज्ञान पर जिससे बच्चों को भविष्य में भरपूर लाभ हो सके । 4-8 आयु वर्ग को एक साथ एक उनकी प्रारंभिक दक्षताओ के विकास के लिए आंकना चाहिए और कक्षा व पाठ्यक्रम का निर्माण इसको ध्यान में रखकर करना चाहिए । एक प्रभावी पाठ्यक्रम बनाने के लिए उसके डिज़ाइन, प्लानिंग, पायलटिंग, आदि को ज़मीनी हकीकत को ध्यान में रखना आवश्यक है ।
छोटे बच्चों को उपचारात्मक कदम के रूप में आभिभावकों को बच्चों के साथ मिलकर कुछ सतत कार्य करने पर ध्यान देना आवश्यक है। बच्चों के साथ मिलकर एक ऐसा रूटीन बनाया जाना होगा जिसमें उनकी पढ़ाई-लिखाई, सीखने, खेलने, मनोरंजन की चीजें सब शामिल हों। बच्चो को अपना भी समय दीजिए जिसमे बच्चों को छोटे-छोटे सीख एवं आदतों से शुरुआत कर सकते है। इन सीख व आदतों को धीरे धीरे बढ़ाएं। अगर आप बच्चे की आधा से पौन घंटे की क्लास लेना चाहते हैं तो दस मिनट की क्लास से शुरुआत करें। धीरे-धीरे बच्चा इस कड़ी से जुड़ते जाएगा एवं आपके द्वारा बताये गए कार्य को सहजता से करेगा, इसमें कोई दो मत नहीं है कि बच्चा आपके लाड-प्यार के कारण वैसी तन्यमयता न दिखाए जैसी किसी अन्य शिक्षक या स्कूल में दिखता तो, धीरे-धीरे बच्चा आपसे सिखने में सहज महसूस करने लगेगा। अधीरता न दिखाए, बच्चा आपको शिक्षक न समझकर अपने एक करीबी दोस्त या साथी समझता है इसलिए शीघ्र ही आपसे सहज नहीं होगा।
बच्चों के साथ खुलकर बातचीत करें, बच्चों को प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करें। उनकी भावनाओं को समझें। ध्यान रखें कि दबाव की स्थिति में बच्चों की प्रतिक्रिया कुछ अलग हो सकती है। इसलिए उन्हें समझें और सहनशील बन रहें। बच्चों से किसी मुद्दे पर बात करें और जानें उन्हें उसके बारे में कितना पता है। और फिर उसकी जानकारी को बढ़ाएं। उन्हें बताएं कि हाथ कैसे धोने चाहिए और यह कितना जरूरी है। यह भी बताएं कि हाथों को चेहरे पर न लगाएं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बच्चों की सुरक्षा को ध्यान देना बहुत आवश्यक हो जाता है जब बच्चों की पढाई ऑनलाइन हो रही हो। इंटरनेट से बच्चों को काफी ज्ञान मिलता है। उन्हें काफी सीखने को मिलता है। लेकिन पेरेंट्स को सुरक्षा के लिहाज से ध्यान रखना चाहिए कि उसका गलत इस्तेमाल न हों। बच्चों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल अनियंत्रित नहीं होना चाहिए। इसपर नियंत्रण रखें।अपने बच्चों के स्कूल के संपर्क में रहें,स्कूल की टीचरों से बात करते रहें, मार्गदर्शन लेते रहें।
लेखक/ विचारक
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
मोबाइल न. 9893573770
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