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मकर संक्रांति आपसी खुशहाली एवं समृद्धि का प्रतीक

मकर संक्रांति आपसी खुशहाली एवं समृद्धि का प्रतीक

 


किसानों के चेहरे पर, आई नई मुस्कान
मकर संक्रांति लाई, खुशियाँ बहुत अपार
नई फसल से स्वागत कर, पर्व सब मनायें
हर घर धन धान्य से, पूर्ण मनोरथ हो जाये।

मकर संक्रांति एक ऐसा त्यौहार है जो संपूर्ण भारत में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, यह ना सिर्फ अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है बल्कि इसको मनाने के तरीके भी अलग-अलग है। सम्पूर्ण भारत मे इसे बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।  मकर संक्रांति हिंदू धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक ऐसा त्योहार है जो हर वर्ष एक सुनिश्चित तिथि पर आता है। यह हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। अन्य त्योहारों की तरह इस त्योहार पर भी मिठाई बनाने का विशेष महत्व है औऱ उन मिठाई में गुड और तिल के लड्डू विशेष होते हैं। यह त्योहार मुख्य रूप से पतंगबाजी करने का त्यौहार होता है । सभी लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ पतंगबाजी का आनंद लेते नजर आते हैं। 
इस पर्व को मनाने के कई तर्क एवं मान्यताएं है, अलग-अलग क्षेत्र विशेष की मान्यताओं के आधार पर इसे मनाया जाता है। मकर संक्रांति से विभिन्न तर्क जुड़े हुए हैं कहा जाता है कि यदि इस दिन जो व्यक्ति पवित्र नदी जैसे-गंगा, यमुना आदि नदी में स्नान करते हैं उसके सभी पाप नाश हो जाते हैं साथ ही साथ इस दिन दान करने का भी अपना अलग महत्व है।
यह पर्व मनाने के पीछे कई वैज्ञानिक मान्यता है तो कई सामाजिक मान्यता है एक मान्यता यह भी है की भीष्म पितामह जिनको यह वरदान था कि कोई उनका नाश नहीं कर सकता महाभारत काल के भीष्म पितामह ने इसी मकर संक्रांति के दिन को अपना शरीर त्यागा था। पुराणों की मानें तो यह पावन त्यौहार सूर्य के उत्तरायण होने की दशा में मनाया जाता है कहा जाता है कि सूर्य उत्तरायण की दशा के बाद जब सूर्य मकर रेखा से होकर गुजरता है उसी भौगोलिक घटना को वैज्ञानिक रूप से मकर संक्रांति कहते हैं। 
इस त्यौहार को मनाने के अपने बहुत से महत्व है जिसमें से कुछ ऐतिहासिक है तो कुछ सामाजिक। ऐतिहासिक महत्व भगवान सूर्य और उनके पुत्र शनि से जुड़ा है कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य उनके पुत्र शनि से मिलते हैं शनि जो है वह मकर राशि के स्वामी है। अतः इस मिलन को उत्सव का रूप देकर मकर संक्रांति के रूप में मनाते हैं
हर त्यौहार की भांति इस त्यौहार का भी अपना एक अलग ही सामाजिक महत्व है जैसे संपूर्ण भारत में यह कितने अलग-अलग नामों से जाना जाता है, कितने ही अलग-अलग नीति नियम के अनुसार मनाया जाता है फिर भी इस त्योहार का मकसद आपसी प्रेम बढ़ाना होता है। इस व्यस्त जीवनशैली में चाहे लोग कितने भी व्यस्त हो जाए परंतु यह उत्सव उनको आपस में जोड़ें रहते हैं क्योंकि आजकल के इस आधुनिक युग में यह त्यौहार ही है जिन्होंने हमें व्यक्तिगत रूप से आपस में जोड़ रखा है। मकर संक्रांति के बाद से भौगोलिक रूप से रातें छोटी और दिन लंबे होने प्रारंभ हो जाते हैं। मकर संक्रांति मुख्यता आनंद, खुशी और आपसी मेलजोल बनाने का त्यौहार है। जैसे-जैसे हम आधुनिक होते जा रहे हैं वैसे-वैसे हम अपनी संस्कृति से भी दूर जाते जा रहे हैं इस स्थिति में यह पावन त्यौहार हमें हर प्रकार से अपनी मिट्टी, अपनी सभ्यता से जोड़ता है जैसे पहले के समय में लोग गंगा में स्नान करना बहुत बड़ा काम मानते थे कि गंगा स्नान कर लिया, तो जीवन सफल हो गया। इस दिन भारत के हर कोने में पतंग उड़ाने का चलन है। इस दिन बड़े एवं बच्चे सब पतंग उड़ाकर ख़ुशी मानते है। बच्चों में इस दिन के लिए विशेष उमंग होती है। कंही-कंही इसे एक बहुत बड़े आयोजन कर पतंगबाजी की प्रतियोगिता की जाती है जिसमे हर जगहके लोग शामिल होते है एवं अपनी ख़ुशियों को जाहिर करते है। 
यह त्योहार खुशियां बाटने एवं खुशियां को जीने का पर्व है। परंतु आजकल का मनुष्य इन सब से दूर जाता जा रहा है, आज इंसान दान करने को दिखावा बना चुका है अतः यह त्यौहार हमें सिखाता है कि गंगा आदि नदियों में स्नान करना कितना पावन होता है तथा दान ऐसे करना चाहिए कि किसी को पता भी ना चले, ना कि पूरी दुनिया में दिखावा करके। परिवर्तन भौगोलिक रूप से भी तथा सामाजिक रूप से भी भौगोलिक रूप से परिवर्तन होता है कि इस दिन से दिन बड़े व रातें छोटी हो जाती है तथा सामाजिक रूप से इस दिन से समाज में खुशहाली आती है किसानों के लिए यह सबसे बड़ा खुशी का दिन होता है।

खुशियों की बहार, मन मे उमंग बेसुमार
खुशहाली के रास्ते, आई मकर संक्रान्ति।
सारे गम भुलाकर, आज इसे मनाएंगे
हम सब मिलकर, खुशी से पतंग उड़ाएंगे।।

लेखक
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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