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 "युद्ध धर्म नहीं, शांति कामना धर्म है"

"युद्ध धर्म नहीं, शांति कामना धर्म है"

 "युद्ध धर्म नहीं, शांति कामना धर्म है" War is not a religion, peace is a religion of desire.

आजकल देश और दुनिया में एक ही बात की चर्चा हो रही है कि क्या अब रूस दुनिया का नया शहंशाह बनने वाला है, क्या अब अमेरिका और यूरोप की बादशाहत खत्म होने वाली है? एक भविष्यवाणी के अनुसार पुतिन अब यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया के सबसे ताकतवर इंसान बनने वाले हैं, और रूस दुनिया पर राज करेगा। पर किसीने सोचा है की इस बादशाहत उनको किस कीमत पर मिलेगी। कितने परिवारों को अनाथ करके, कितने लोगों को तबाह करके और कितने खून और आँसूओं की नदियाँ बहेगी तब युद्ध ख़त्म होगा, फिर कितने सारे मकबरों पर पुतिन अपनी बादशाहत का महल खड़ा करेंगे। 

"क्यूँ इतना वैमनस्य पालना है दो गज ज़मीं की जरूरत है आख़री अंजाम की ख़ातिर हर इंसान को, फिर क्यूँ अहंकार को अपना अस्तित्व समझकर पूरे देश को खतरे में ड़ालना है"

अंग्रेजी में कहावत है everything is fair in love and war अर्थात प्यार और युद्ध में सब जायज़ है। जायज़ तब होता जब राजा प्रजा के हितों को और देश की उन्नति को ध्यान में रखकर युद्ध का ब्यूगुल बजाता, युद्ध करने वाले न आगाज़ सोचते है न अंजाम। पर

जब युद्ध का ऐलान होता है तब मानवता को नुकसान पहुंचता है। आम इंसान की हालत खस्ता होती है, देश दस साल पीछे चला जाता है और आर्थिक स्थिति डावाँडोल हो जाती है। युद्ध की परिस्थिति बड़ी विचलित करने वाली होती है, युद्ध में शहीद होने वाले सिपाहियों के परिवारों की आहें, सिसकियाँ, बम धमाके और गोला बारूद की गूँज से क्षत-विक्षत इंसान, वीभत्स  द्रश्यों से मानसिक हालत अवसाद ग्रस्त हो जाती है। दूसरे देशों से काम या पढ़ाई के सिलसिले में आए लोगों की मनोदशा असहनीय होती है। जब युद्ध होते है तब 

युद्ध में अस्त्रों शस्त्रों के प्रयोग से  मानवता नष्ट होकर प्रलय की स्थिति तक आ सकती है। दुनिया के बड़े देशों के पास ऐसे अस्त्रों का भण्डार पड़ा है, जिसका उपयोग हुआ तो तबाही के ऐसे मंज़र दिखेंगे की कभी किसीने सोचा नहीं होगा। अच्छा है इस मामले में सब एक-दूसरे से डरते हैं। उनके बीच समझौता ही संसार को बचा सकता है।

युद्ध के लाभों की अगर बात करें तो लाभ कम नज़र आते हैं। आक्रमण करके दोनों पक्षों को लगता है कि वे जीत जायेंगे। लेकिन ऐसा होता नहीं युद्ध होता है शांति के लिए पर शांति से ज़्यादा अशांति फैलती है। युद्ध से होने वाले नुकसान की बात करें तो युद्ध से नुकसान ही नुकसान हैं। मार-काट होना, लोगों में द्वेष, अन्य या देशों की नज़र में अपनी बुरी छवि बनाना, आम लोगों के मन में भय बैठना, परिवारों का बिखरना, लोगों को जान बचाने के लिए जानें कहाँ कहाँ पनाह लेनी पड़ती है अराजकता फैलती है, विस्फोटक पदार्थों से पर्यावण को नुक्सान होता है वगैरह।

युद्धों में सैकड़ों-हजारों लोग जान से हाथ धो बैठते हैं। साथ में जानमाल और  संपत्ति का भारी नुकसान भी होता है । प्राचीन काल के युद्धों में सेनायें ही भाग लेती थीं, लेकिन आजकल के आधुनिक युद्धों से आम जनता भी प्रभावित होती है। युद्धों के प्रभावो से हमारा सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और आर्थिक जीवन भी प्रभावित होता है। इससे गरीब और अमीर सभी प्रभावित होते है। शहर और नगर बरबाद हो जाते हैं। पुरुष, स्त्री, बच्चे, जवान, बूढ़ें सभी मौत के घाट उतर जाते हैं और कई परिवार बिखर जाते हैं।

युद्धों में अंधाधुंध बमबारी होती है, दोनों ही पक्षों द्वारा एक-दूसरे के प्रमुख औद्योगिक और व्यापारिक महत्त्व के स्थानों को निशाना बनाया जाता है। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ क्षणों मे मिट्टी में मिल जाती हैं।आवागमन के साधन नष्ट हो जाते हैं, जिनसे भुखमरी फैल जाती है। छोटे लोगों का जीना मुहाल हो जाता है। युद्ध के समय सरकार अपन सारा धन और शक्ति युद्ध-सामग्री जुटाने में लगा देती हैं, जिससे नष्ट हुए उद्योग और व्यापार को वापस खड़ा में दिक्कत होती है। युद्ध के दौरान देश के बड़े व्यापारी और जमाखोर परिस्थिति का लाभ उठाकर मुनाफ़ाखोर बन जाते हैं। हर कोई युद्ध रूपी चिता में अपनी रोटियाँ सेकने लगते है, वस्तुओं को छिपाकर कृत्रिम अछत पैदा करके कीमतें बढा देते हैं और आम जनता को दुगने भाव में बेचकर लूटते हैं। 

बहत ही विषम परिस्थितियों में युद्ध का सहारा लेना चाहिए, बेशक युद्ध धर्म नहीं है शांति की भावना धर्म है, लेकिन जब बात अपने अस्तित्व या देश की रक्षा की आती है तो युद्ध जायज़ है। हमारे पूर्वजों ने कई सारे युद्ध लड़े तब जाकर हम भारतवासियों को अंग्रेजी हुकूमत से छुटकारा मिला। नहीं तो हम आज भी अंग्रेजो की गुलामी कर रहे होते। हर देश के वज़िर-ए-आज़म को पहले प्रजा का हित और देश की उन्नति के बारे में सोचना चाहिए। समझौता और शांति से बात न बनने पर युद्ध को आख़री शस्त्र के तौर पर रखना चाहिए, क्यूँकि युद्ध किसी भी परिस्थिति का समाधान नहीं युद्ध पीड़ा है।

भावना ठाकर 'भावु' (बेंगलोर, कर्नाटक)

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