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 सुख दुःख

सुख दुःख

Sukh dukh


दुनिया के इस मेले में,

 सुख-दुख का खेल अनोखा है ।

जिसने देखा केवल सुख ,

वो तो आंख का धोखा है।


सुबह शाम से सुख-दुख सारे ,

ये तो आते जाते हैं ।

दुख की घड़ी बड़ी है लगती,

 सुख छोटे रह जाते हैं ।


धूप छांव से सुख दुख भी ,

हर पल साथ निभाते हैं।

कभी बसंत से ये बन जाते, 

कभी पतझड़ ये दे जाते हैं ।


बन उमंगे भीतर ये,

 कभी जोश भरे जाते हैं ।

और कभी ये तोड़ के हमको ,

तन्हां सा कर जाते हैं ।


संग इनके ही हिल मिलकर ,

हम जीवन ये बिताते हैं ।

कभी ये देते भोर  सुबह सी ,

 कभी यादें ये बन जाते हैं ।


जीवन के अंतिम क्षण तक ये ,

 साथ सदा निभाते हैं ।

खुशियों की सौगातों संग ये,

 दर्द बहुत दे जाते हैं ।


सुख-दुख मिलकर ही हमको ,

जीवन जीना सिखाते हैं ।

नाजुक से हम होते हैं ये,

 मजबूत हमें बनाते हैं ।।

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पूनम शर्मा स्नेहिल

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