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महाशिवरात्रि का महत्त्व एवं मान्यता, इस दिन शिवपार्वती की पूजा से मिलता है सहज ही शुभ फल

महाशिवरात्रि का महत्त्व एवं मान्यता, इस दिन शिवपार्वती की पूजा से मिलता है सहज ही शुभ फल

शिवरात्रि तो हर महीने में आती है लेकिन महाशिवरात्रि सालभर में एक बार आती है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इस बार साल 2022 में यह पर्व 01 मार्च मंगलवार को है। महाशिवरात्रि का महत्व इसलिए है क्योंकि यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है। आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है। शिवभक्त इस दिन व्रत रखकर अपने आराध्य का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिरों में जलाभिषेक का कार्यक्रम दिन भर चलता है। लेकिन क्या आपको पता है कि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है, इसके पीछे की घटना क्या है।

पहली बार प्रकट हुए थे शिवजी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका ना तो आदि था और न अंत। बताया जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। वह शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए। दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला ।


64 जगहों पर प्रकट हुए थे शिवलिंग
एक और कथा यह भी है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग विभिन्न 64 जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल 12 जगह का नाम पता है। इन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं। महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में लोग दीपस्तंभ लगाते हैं। दीपस्तंभ इसलिए लगाते हैं ताकि लोग शिवजी के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव कर सकें। यह जो मूर्ति है उसका नाम लिंगोभव, यानी जो लिंग से प्रकट हुए थे। ऐसा लिंग जिसकी न तो आदि था और न ही अंत।


शिव और शक्ति का हुआ था मिलन
महाशिवरात्रि को पूरी रात शिवभक्त अपने आराध्य जागरण करते हैं। शिवभक्त इस दिन शिवजी की शादी का उत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ शक्ति की शादी हुई थी। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव जो वैरागी थी, वह गृहस्थ बन गए। माना जाता है कि शिवरात्रि के 15 दिन पश्चात होली का त्योहार मनाने के पीछे एक कारण यह भी है।

महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त (Maha Shivratri ka shubh muhurt)
1 मार्च को ये शिवरात्रि सुबह 3 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर बुधवार 2 मार्च को सुबह 10 तक रहेगी. रात्रि की पूजा शाम को 6 बजकर 22 मिनट से शुरू होकर रात 12 बजकर 33 मिनट तक होगी. शिवरात्रि में जो रात का समय होता है उसमें चार पहर की पूजा होती है.


महाशिवरात्रि की पूजा विधि (Maha Shivratri 2022 Puja Vidhi)
1- शिव रात्रि को भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान करा कराएं. केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं. पूरी रात्रि का दीपक जलाएं। चंदन का तिलक लगाएं।
2- तीन बेलपत्र, भांग धतूर, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं. सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर प्रसाद बांटें।
3 - पूजा में सभी उपचार चढ़ाते हुए ॐ नमो भगवते रूद्राय, ॐ नमः शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नमः मंत्र का जाप करें।

संकल्पों में सहायक शिवरात्रि! संकल्प कैसे आता है-
'स्वल्पमयस्य धर्मस्य जायते महतो भयान, शिवसंकल्परूपेण अनेन व्रतेन वान्छित फल प्राप्यते

संकल्प का प्रादुर्भाव शिव भक्ति से आता है। जब हम शिवजी के लिए व्रत-उपवास, दुखियों का उपचार करते हैं, तो हमारा मन आत्मबल से भर जाता है।

अनंतकाल शिव ही सत्य है और इसी में सुंदरता का वास है। सत्य की शक्ति, आत्मविश्वास, अहिंसा, समरसता और जगत को अपना बनाने व मानने की हिम्मत व्रत-उत्सवों से मिलती रही है।

शक्ति बिना सब सूना

शक्ति चेतना का रूप है और अगर शिव में शक्ति हटाने का प्रयास भी किया जाए तो पीछे शव ही रह जाता है। शक्ति का शिव और शिव का शक्ति के मिलन की अवस्था हो शिव है। इसलिए शिव को 'अर्नारीश्वर भी कहते है। शिव को ऋग्वेद में रुद्र रूप में पूज्यकर उनके रुद्र स्तवन में स्तुति की है। शिव पुराण, लिंग, पुराण, स्कन्दपुराण, मत्स्य पुराण कर्म पुराण पुराण और ब्रह्मांड पुराण-यह छह पुराण तो पूर्णतः शैव उपासना से भरे पड़े हैं। मानसिक मंथन करें, तो गहन अंधकार से जागना, स्वयं को उबारना आदि सङ्कल्प हमें शिवरात्रि से सीखने को मिलता है। भारत की परंपरा है कि-सात वारों में 9 उत्सव मनाते हैं क्योंकि उत्सव से उत्साह, उमंग, ऊर्जा की प्राप्ति होती है। उत्सवों, त्योहार, व्रत-उपवास से हमें शक्ति मिलती है।

शिवरात्रि का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकी ये शिव संकल्प का उत्सव है। आज के की रात शिवलिंग पर रुद्राभिषेक कर सुखी जीवन का संकल्प किया जाता है।

शिवभक्त संकल्पवान होते हैं, जो एक बार मन में ठान लिए उसे पूर्ण करने के लिए जी-जान लगा देते हैं। शिव-संकल्प का शुभ परिणाम है कि अयोध्या में राम मंदिर का नव निर्माण तथा काशी में बाबा विश्वनाथ की जगत में वाह-वाह हुई और वाहेगुरु की कृपा से 3000 sf का मन्दिर परिसर 5 लाख वर्गफुट का हो गया। कल्पना भी नहीं कि थी किसी ने कि कभी विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग से सीधा माँ गंगा से मिलन हो पायेगा। शिव सङ्कल्प से ही भारत का उत्तरोत्तर विकास हो रहा है। दुनिया में आज हमारा भी वजूद स्थापित हो गया। भारतीय संस्कृति में सङ्कल्प यानि शिव का इतना गुणगान है कि वैदिक मंत्रों में हजारों बार तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु की आवृत्ति होती है।

शिवपुराण लिखता है कि शिव का नाम ही सङ्कल्प है अर्थात जहां जुबां पर शिव है, वही सङ्कल्प भी है। बिना शिव के सब शव है। बाद एक छोटी (इ) की मात्रा हटाना-जोड़ना है।

शिवसंकल्प की यह प्रवृत्ति एवं आवृत्ति आदिकालीन है। सतयुग से आज तक सब कुछ शिव पर सदा है, शिव से सन्सार सजा है। दुनिया में रौनक शिवलिंगों से ही है।

चिंतन करेंगे, तो पाएंगे कि मानव मस्तिष्क का रूप आकार शिवलिंग की तरह है और अगर अपने दोनों हाथ आगे कर लें, तो जलहरी बनकर व्यक्ति पूरी तरह शिव हो जाता है। अवधूत अघोरी अपनी ध्यान साधना, मानव पूजा के द्वारा अपने शरीर से 108 शिव मुद्रा बनाकर शिवसाधना करते हैं!! वैदिक परम्परा के हिसाब से सम्पूर्ण जगत ही शिवमय है। शिवसंकल्प की शक्ति का अहसास रामायण और महाभारत काल में भी हुई।

आधुनिक वीरों ने भी भारत की अस्मिता, मानसम्मान शिव सङ्कल्प की दम ही बचाये रखा। ऐसे महावीरों पर हमें गुमान है। हमारा यह शिवसंकल्प सन्सार का मार्गदर्शन कर रहा है।

शिव-शक्ति के मिलन का उत्सव…मानवता और राष्ट्र रक्षा का संकल्प ही कावरों में गंगाजल भरकर कावड़ियों की टोली शिव के द्वारा जाने को आतुर रहती है। यह यात्रा 200 से 800 किलोमीटर की होती है, लेकिन शिवसंकल्प से साथ यह शवयात्रा पूर्ण होती है।

शिव बिना सब शव और शक्तिहीन
तन्दरुस्त हों, तो शक्ति हमारे अंदर से आती है और स्वस्थ्य जीवन तथा रोगप्रतिरोधक क्षमता शिव से आती है। क्योंकि शिव के अलावा इस ब्रह्माण्ड में कोई भी देवता ब्रह्मचारी नहीं है।

देह को दीर्घकाल तक जीवित रखने हेतु चिरस्थाई शक्ति की जरूरत होती है और इसका मूल साधन ब्रह्मचर्य है। सृष्टि में हो या अन्तर्मन की शांति शिव से ही है। इसके लिए सङ्कल्प हो कि शिव के अतिरिक्त सब व्यर्थ है।

शक्ति सयंम की हो या उन्नति की अगर चाहिए, तो शिव से जुड़ना ही पड़ेगा। अतः भटकना वेवकूफी है।

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