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 एक बड़ा अभियान हो जल संरक्षण, देशभर में चलाया जाये.....!

एक बड़ा अभियान हो जल संरक्षण, देशभर में चलाया जाये.....!


कभी अपने शीतल जल से हमारे शहरों और गांवों के तमाम लोगों की प्यास बुझाने वाले हमारे पुरखों के जमाने की धरोहर कुंऐं, बावड़ियां, नदी, तालाबों की वर्तमान में स्थिति बहुत ही जीर्णशीर्ण, परित्यक्त और उपेक्षित दशा में  हैं, कबूतरों और अन्य पक्षियों का बसेरा बन गये और संरक्षण के अभाव में उजाड़ और गंदगी-कूड़े-कचरे का प्रतिमान मात्र बन कर रह गये हैं।

कारण इनकी अनवरत देखभाल, सफाई व्यवस्था खत्म होने के साथ प्राकृतिक संपदा, वनजंगल, पेड़पौधे, हरियाली का मानव स्वार्थवश खत्म होना, सीमेंट कांक्रीट की पृथ्वी पर फैलती परतें, मार्ग व भवनों के जाल फैलने के साथ धरती का बढ़ता तापमान भी जल संकट का कारण बना है। वर्तमान में कई बड़ी नदियां हैं, बांध हैं , नहरें हैं लेकिन प्रचंड गर्मी  का उन पर भी असर गिरता हैं, ऐसे समय से पानी कम हो जाता हैं और अधिकांशतः सूखने के कगार पर सिमट जाती हैं।

हालत यह होती है कि ऐसे समय सभी इन संकुचित होते जल स्त्रोतों पर निर्भर हो जाते हैं। इसी के साथ जहां जल उपलब्ध है वहां अपव्यय और संग्रहण भी जल का अधिक होने लगता है। बिगड़े पर्यावरण की समस्या तो पूरी दुनियां में गंभीर रूप ले चुकी है और हमारा भारत इस समस्या से अलग नहीं है। सरकार को इस समस्या को बड़ी गंभीरता से लेना होगा। 

सरकार को एक बड़ा अभियान सतत रूप में जल संरक्षण हेतु आवश्यक रूप से चलाना चाहिए। जल दोहन पर नियंत्रण करने के साथ जल का अपव्यय रोकने हेतु जनता को जागरुक करना चाहिए। जल ही जीवन हैं इसके बिना कुछ नहीं। इस कार्य में समाचार पत्रों और विभिन्न चैनलों का सहयोग लिया जा सकता है। पुराने जल स्त्रोतों की सफाई और पुनर्जीवित करने का अभियान चलाया जाना चाहिए । जनता को स्वयं आगे होकर जल अपव्यय रोकना होगा।

पहले जल स्त्रोत बारहों महीने जीवित रहते थे। नदियों, तालाबों में गर्मी में भी जल रहता था। कुंऐं, बावड़ियों की साफ-सफाई लगातार होती थी जिससे भरपूर और साफ जल उपलब्ध रहता था लेकिन जंंगलों को, पेड़पौधों को उजाड़ने की वजह से धरती का तापमान बढ़ा और सीमेंट, कांक्रीट के जाल बिछाने से बड़े-बड़े रहवासी क्षेत्र व नये राजमार्गों के निर्माण-चौड़ीकरण ने लाखों- करोड़ों पेड़पौधे, जंगल, वनस्पतियां खत्म कर दी अब पीने के लिए जल और ठंडी छांव के लिए गर्मी में लोग भटकते देखे जा सकते हैं।

  • नई कालोनियों ने नदी-नाले अतिक्रमण कर पाट दिये, हरियाली खत्म की, जमीनों के भाव बढ़ने से खेतिहर किसान भी जमीनें कालोनी विकसित करने वालों को
  • बेच रहे हैं। जनसंख्या का दबाव शहरों और कस्बों में बढ़ता जा रहा है। सीमेंट-कांक्रीट की पक्की सड़कों ने जमीन में जल सोखने के स्तर-क्षेत्र में कमी कर दी है।
  • जमीन में जल का स्तर भी सैंकड़ों फीट नीचे गिर गया हैं।
  • बड़े-बड़े नलकूप, बोरिंग सूख रहे हैं एवं फैल हो रहे हैं।
  • हरियाली का प्रतिशत बहुत गिर गया है।
  • पहले प्याऊ, कुंऐं, बावड़ियों से जल मिल जाता था अब पानी बिकने लगा है। पहले मुफ्त में जल पीने- वापरने को मिलता था। अब चाय की कीमत में जल खरीदकर
  • पीते हैं। आगे का समय ऐसा भी आयेगा जब पैसे -रूपये देने के बावजूद पानी नहीं मिलेगा। इसलिये सभी को आवश्यक रूप से जल का अपव्यय रोकने के प्रयास करना चाहिए ।



- मदन वर्मा " माणिक " 
  इंदौर, मध्यप्रदेश
मो. 6264366070

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