कविता - "माँ"
Sunday 3 July 2022
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माँ! कोख में रखकर तुमने,
न जाने कितने कष्ट सहे
मेरे आने की खुशी में,
अपनी का त्याग किये।
माँ क्या कहूँ मैं! मेरे ऊपर ,
अनगिनत उपकार तेरे
आजीवन बस दिया ही तूने,
मुझसे तूने कुछ न लिये।
मुझे सुलाने अच्छे से,
माँ ! तुम कई रात जागी होगी
मुझे दिखाएं मीठे सपने,
तुमने न पलके झपकाएं होगी।
माँ तेरा आशीर्वाद प्यार दुलार,
सबसे बड़ी पूँजी है मेरी
तेरे चरणों मे है जन्नत,
बिन तेरे सुकून कहाँ फिर होगी।
माँ ! तेरा प्यार दुलार आशीष,
सदा बनाये रहना
न रहे सिर सूना मेरा,
आशीर्वाद से सदा भिगोते रहना।
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लेखक
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा, म.प्र.
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