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कविता - "माँ"

कविता - "माँ"


माँ की दुआओं ने, 
आज ऐसा काम किया
नालायक था जीवन मे, 
समाज मे ऊँचा नाम दिया।

माँ! कोख में रखकर तुमने, 
न जाने कितने कष्ट सहे
मेरे आने की खुशी में, 
अपनी का त्याग किये।

माँ क्या कहूँ मैं! मेरे ऊपर , 
अनगिनत उपकार तेरे
आजीवन बस दिया ही तूने, 
मुझसे तूने कुछ न लिये।

मुझे सुलाने अच्छे से, 
माँ ! तुम कई रात जागी होगी
मुझे दिखाएं मीठे सपने, 
तुमने न पलके झपकाएं होगी।

माँ तेरा आशीर्वाद प्यार दुलार, 
सबसे बड़ी पूँजी है मेरी 
तेरे चरणों मे है जन्नत, 
बिन तेरे सुकून कहाँ फिर होगी।

माँ ! तेरा प्यार दुलार आशीष, 
सदा बनाये रहना 
न रहे सिर सूना मेरा, 
आशीर्वाद से सदा भिगोते रहना।
................................


लेखक
श्याम कुमार कोलारे
छिंदवाड़ा, म.प्र.

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