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आलेख - शरुआती कक्षाओं के बच्चों की शिक्षा के लिए चुनौतीपूर्ण दौर से निपटने के लिए करना होगा आवश्यक उपाय

आलेख - शरुआती कक्षाओं के बच्चों की शिक्षा के लिए चुनौतीपूर्ण दौर से निपटने के लिए करना होगा आवश्यक उपाय

आलेख - शरुआती कक्षाओं के बच्चों की शिक्षा के लिए चुनौतीपूर्ण दौर से निपटने के लिए करना होगा आवश्यक उपाय

एक लम्बे समय बाद फिर से स्कूल खुल गये गए है l बच्चों की चहल स्कूलों में बढ़ने लगी है l स्कूल परिसर में फिर से रौनक आने लगी हैl मासूम बच्चे फिर विद्या के मंदिर के पुजारी बनने की तैयारी से चल पड़े है l बच्चों के माता-पिता उनके सपनो को सजाने फिर से अपनी गाढ़ी कमाई को शिक्षा के लिए नौछावर करने के लिए निकल पड़े है l हर माता-पिता का एक सपना होता है कि उसका बच्चा उनसे भी अच्छा पद पर आसीन होकर जीवन के अच्छे से अच्छे मुकाम हासिल करे l इसके लिए वह हर संभव पढ़ाने की कोशिश करते है; और अपने बच्चों के भविष्य को सवारने के लिए शिक्षक रुपी गुरु के हाथो सौप देते है l गुरु की महिमा से हम सब परिचित है; गुरु बच्चों की कमजोर बुद्धि को कुशाग्र करने में अपना पूरा हुनर लगा देता है, तब कही बच्चे भविष्य के लिए सभ्य समाज में अपने कुशल नेतृत्व से रहने व सभी जीवन जीने के लिए तैयार हो पाते है l 

अभी कोरोनाकाल के बाद एक लम्बे समय बाद स्कूल अपने पूर्व गति से पुनः लगने के लिए तैयार है l हर स्कूल ने बच्चों को पढ़ाने का एक माइंडमेप बना लिया है l दो वर्षों में सरकार बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने लिए अपनी कई तरकीब लगा चुकी है l इसके लिए शिक्षको को समय-समय पर उचित निर्देश एवं प्रशिक्षण भी दिया गया l शिक्षको ने बच्चों को पढ़ाई की घुट्टी पिलाने का काफी प्रयास किया; इस घुट्टी का कितना असर हुआ ये हम सभी से छुपा नहीं है l समय परिस्थिति अच्छी से अच्छी योजना पर पानी फेरने या सफल बनाने के लिए काफी होती है l कोरोना काल ने बच्चों को सीखने की प्रवर्ती पर काफी प्रभाव डाला है l हम सभी पर बच्चों की सही स्थिति में लाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है; केवल शिक्षक के भरोसे बच्चों के भविष्य की कल्पना करना हमारी नासमझी हो सकती है, इस मिशन में हमें अपना पूर्ण समर्थन देना होगा l  

मार्च 2019 की कालावधि में कोरोना ने जैसे ही दस्तक दी सबसे पहले स्कूल को बंद किया गया और वही से बच्चो के सीखने की चाहत में परिवर्तन आना प्रारंभ हो गया l बच्चे को घर में रहने को मिला एवं स्वतंत्र तरीको से खेलने के लिए मिला; सारा दिन बस एक काम खेल..खेल..खेल..l अभिभावकों का बच्चों को ज्यादा दखल भी बच्चों में विपरीत प्रभाव का कारण बना l बहुत से अभिभावक बच्चो के लिए दुश्मन इसलिए बन गए कि उन्होंने बच्चों को पढने के लिए दबाव डाला l 


शिक्षक को करना होगा उचित प्रबंधन –

बच्चे एक गीली मिटटी के सामान होते है उसे जिस आकर में गढ़े वह वही आकर ले लेता है l इस गीली  मिट्टी रूपी बच्चो को सही दिशा में ले जाने, सही आकर देने का काम शिक्षक करते है l बच्चों को सही समय पर सही ज्ञान देना शिक्षक की जिम्मेदारी है l शिक्षक को अपनी पूर्ण जिम्मेदारी से यह कर्तव्य निभाना होगा l एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट 2018 के आकडे बताते है कि कक्षा पाँचवी के आधे से अधिक बच्चे कक्षा दूसरी के स्तर का पाठ भी नहीं पढ़ पाते, यही स्थिति उनके गणित स्तर का भी है l प्रश्न यह उठता है कि सरकार शिक्षा के लिए इतना पैसा खर्च कर रही है तो उसके एवज में बच्चों को पढ़ना यानि कक्षा अनुसार समझ क्यों विकसित नहीं हो पा रही है ! क्या हम यह कह सकते है कि हमारे शिक्षकगण बच्चों को उनकी कक्षा के अनुसार दक्षता देने के लिए तैयार नहीं है; या फिर हमारी शिक्षा प्रणाली में ही कही कमी है l जो भी हो परन्तु इस प्रणाली को सुधारने के लिए सरकार के साथ-साथ जन समुदाय को भी अपनी भूमिका अदा करनी होगी l 


शिक्षा के लिए सामुदायिक पहल जरुरी –

सामुदायिक पहल से शिक्षा के स्तर में सुधार करने की पहल की जा सकती है l कोरोनाकाल में शिक्षा का बेसिक ढ़ांचा में बहुत परिवर्तन आया है l ऑनलाइन शिक्षा को लेकर सरकार गंभीरता से कार्य कर रही थी ऑनलाइन शिक्षा की पहुँच गाँव-गाँव तक पहुचने का जो जिम्मा सरकार ने लिया था; कुछ हद तक तो पूरा हुआ है परन्तु अभी भी बहुत से ग्रामीण क्षेत्र ऑनलाइन शिक्षा से पूरी तरह नहीं जुड़ पाए है l शिक्षा को उत्तम धुरी प्रदान करने के लिए जन सामुदायिक सहयोग जरुरी है l स्कूल के साथ –साथ बच्चों को घर में एक उचित माहौल देने का प्रयास करना होगा l अभिभावको को बच्चों के शिक्षकों से मिलाकर बच्चों के शैक्षिक विकास के बारे में निरंतर चर्चा करते रहना चाहिए, जिससे शिक्षक-अभिभावक बच्चों की उन्नति के लिए एक सेतु का कम कर सके l 


शुरूआती कक्षाओं के बच्चों लिए प्रारंभ से पढ़ाई की शुरुआत करने की आवश्यकता –

पिछले 2 वर्षों से कोरोनाकाल के कारण शुरूआती कक्षा में बच्चों का दाखिला स्कूल में तो हो गया था परन्तु बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जा पाए l उन्होंने स्कूल में पढ़ाई का कोई अनुभव नहीं लिया l केवल स्कूल में दाखिला हुआ पढ़ाई से केवल सरकारी स्कूल के शिक्षकों का ऑनलाइन क्लास के नाम पर व्हाट्सएप्प पर भेजी गई सामगी पहुँचाई गई, उनको पुस्तक एवं अन्य सामग्री, असाइनमेंट के माध्यम से जुड़े रहे, परन्तु यह दूरस्त माध्यम था l छोटे बच्चों को दूरस्त शिक्षा से पढ़ाई करना कितना कारगर हुआ यह अभी स्कूल खुलने के बाद पता चलेगा l स्कूल में शुरूआती कक्षा की शुरुआत प्रारंभिक शिक्षा से ही करनी पड़ेगी l बच्चों को वर्णमाला से पढ़ने के स्तर के सुधार को लेकर कार्य प्रारंभ करना होगा l बच्चों को पहले उनका वर्तमान शिक्षा स्तर को जानना होगा तभी उनकी समझ के अनुसार उनको उपचारात्मक शिक्षा प्रदान करना होगा l बच्चों को उनके स्तर अनुसार पढ़ाने की तैयारी करनी होगी न कि उनकी कक्षा के अनुसार l अभी कुछ स्कूलों में बच्चों का यह हाल है कि बच्चों की कक्षा तो आगे बढ़ गयी है किन्तु बच्चे का शिक्षा स्तर अभी कक्षा के अनुसार नहीं बढ़ पाया है l सबसे पहले इसी को सुधरने की आवश्यकता है l 

पढ़ने का कौशल आगे की शिक्षा के लिए है जरुरी –

बच्चों को अपनी कक्षा की पुस्तक यदि समझ के साथ पढ़ना आ गया तो वह अपनी समझ से आगे की शिक्षा हासिल करने में सक्षम हो जाता है l हम सबने देखा होगा कि यदि पढ़ना आ गया तो बहुत से कठिन अवधारणाओं को समझना आसान हो जाता है l यही बच्चा को पढ़ना ही नहीं आ रहा और उनको कक्षा के पाठ्यक्रम से जोड़कर पढ़ाया जाए तो इस अवधारणा को समझना बच्चों के लिए बहुत कठिन हो जाता है l बच्चा केवल उपरी मन से पाठ्यक्रम के साथ चलता है समझ के साथ नही l इसलिए बच्चों को उसके समझ के स्तर को और अधिक मजबूत करने के लिए कार्य करना अतिआवश्यक हो जाता है l 


(यह लेखक के निजी विचार है )


लेखक 

श्याम कुमार कोलारे 

सामाजिक कार्यकर्त्ता, छिंदवाडा (मध्यप्रदेश)

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