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 मैं बोलूँगा तो बोलोगे कि बोलता है

मैं बोलूँगा तो बोलोगे कि बोलता है

(मुफ़्त की रेवड़ियाँ देश के लिए घातक है)

अभी हाल में प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा कि सरकार द्वारा मुफ्त में जो जनता के लिए मुफ्त में रेवड़ियाँ बाँटने का जो काम किया जा रहा है वह देश के विकास के हित में घातक साबित होगा।दरअसल उनका इशारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा दिल्ली और पंजाब में मुफ्त में बिजली देने की तरफ था।अरविंद केजरीवाल गुजरात में भी मुफ्त बिजली देने का वादा कर रहे हैं जहाँ विधानसभा का चुनाव होने वाला है।केजरीवाल का ये लोकलुभावन वादे लोगों को बहुत रास आ रहा है ,और इसके दम पर उनकी पार्टी दिल्ली और पंजाब में सरकार बना चुकी है।आज जनता मुफ्त में कुछ भी पाने के लिए लालायित रहती है।बिजली का बिल सभी देशवासियों के लिए एक समस्या है।बिल का अनाप शनाप आना सभी लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या है और सभी इससे त्रस्त रहते हैं।और ऐसे में अगर किसी सरकार द्वारा बिजली के बिल में राहत दे दी जाती है तो आम आदमी बहुत राहत महसूस करता है।मोदी जी के सवाल पर केजरीवाल ने जो कहा वह भी सत्य है कि अगर सरकारी भ्रष्टाचार में जो पैसा बचाया जाए उससे लोगों को राहत दी जा सकती है।और रेवड़ियाँ बाँटने से देश का नुकसान होने वाला है तो केंद्र और राज्य की सभी सरकार को इस तरह की मुफ्त योजनाओं को समान रूप से रोकना होगा।केंद्र सरकार बहुत सी मुफ्त योजनाएं शुरू किया है जिससे कुछ लोगों को तत्कालिक लाभ जरूर मिलता है लेकिन दूसरी तरफ बहुसंख्यक आबादी को इसका खामियाजा उठाना पड़ता है।दरअसल किसी भी श्रम के किसी को भी कुछ उपलब्ध करवाना आर्थिक सिद्धांत के ख़िलाफ़ है और इसका खामियाजा आज ना कल देश को उठाना ही पड़ेगा।राजनीतिक दलों द्वारा जो लोकलुभावन वादे अपने घोषणा में किया जाता है उसपर समान रूप से रोक लगनी चाहिए।कोई सरकार मुफ्त में साइकिल तो कोई लैपटॉप आदि बाँटने की बात करता है।और इसमें बहुत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार भी होता है।कुछ लोगों को मुफ्त में कुछ मिल जाता है पर इसके आड़ में सरकारी पैसों का बंदरबांट हो जाता है।आज जरूरत है कि देश में शीर्ष पर बैठे व्यक्तियों के सुविधाओं में कटौती करने की।आज हमारे राष्ट्रपति का वेतन पाँच लाख महीना है और उसके अलावा हर तरफ की सुविधाएं मुफ्त में दी जाती है जिसपर सालाना करोड़ों रुपये खर्च होते हैं।दरअसल भारत जैसे गरीब देश में अभी भी करोड़ों लोग दो वक्त के भोजन से वंचित हैं वहाँ पर एक व्यक्ति को इतनी सुविधा कहीं से उचित नहीं है।इसके अलावा सभी मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को जो सुविधा दी जाती है वह कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता।कहने के लिये तो इस देश में लोकतंत्र है पर चुने गए एक मामूली विधायक से लेकर केंद्र के मंत्री किसी राजा से कम की जिंदगी नही जीते हैं।दरअसल 

सत्ता जिसके हाथ में होती है वह सत्ता की मद में चूर हो जाता है और अपने लिये ज्यादा से ज़्यादा सुविधाएं मुहैया करवा लेता है।और जनता ठगी ठगाई देखते रह जाती है।देश में आज लोकतंत्र दिखावा मात्र है क्योंकि बाप के बाद उसका बेटा अपनी पार्टी का नेतृत्व स्वाभाविक रूप से करने लगता है।सत्ता का हस्तांतरण स्वतः उत्तराधिकारी को मिल जाता है ,जैसा राजतंत्र में होता था, वही प्रक्रिया हूबहू लोकतंत्र में कायम है। आज भारतीय राजनीति एक व्यवसाय बनकर रह गया है जहाँ आप चुनाव जीतने के लिए करोड़ों रुपया खर्च करते हैं और चुनाव जीतने के बाद सूद समेत उसका दुगुना हासिल करने की कोशिश करते हैं।एक मामूली पार्षद भी पहले सायकिल पर चलता है लेकिन पार्षद बनने के बाद फॉर्च्यूनर गाड़ी में घूमता नजर आता है।अब आप इसी से भ्रष्टाचार का अंदाजा लगा सकते हैं।क्या इनको कहीं से कारू का खज़ाना हाथ लग जाता है।आज आवश्यकता है कि देश में सभी को लगभग एक जैसी सुविधाएं मिले।थोड़ा बहुत उन्नीस बीस चल सकता है परंतु राज और रंक वाली स्थिति अब नही होनी चाहिए।और राजनीति में जो लोग आएँ वे सिर्फ सेवा के उद्देश्य से आएँ।देश के शीर्ष पर बैठे लोगों को वही सुविधा मिलनी चाहिए जो हमारे गाँव में रहने वाले गरीब जनता को मिलती है।आपको देश के उस आम नागरिक का प्रतीक बन कर रहना होगा।अगर आप ये कष्ट नहीं उठा सकते तो फिर आप राजनीति में मत आएँ।राजनीति में सिर्फ उन्हीं व्यक्तियों को आना चाहिए जो सभी दुःख तकलीफ़ उठाने के लिए सक्षम हों।दरअसल इसमें जनता का दोष भी उतना ही है।आम जनता अभी भी गुलामी की मानसिकता से बाहर नही निकल पाई है।जनता आज उन्हीं लोगों को वोट देती है जो उस इलाके के सबसे समृद्ध व्यक्ति है या उनके जाति या समाज या धर्म से आता है।उनको इस बात से कोई लेना देना नही रहता कि जिसको वे चुनने जा रहे हैं वह सबसे भ्रष्ट व्यक्ति है।एक शराब की बोतल में जब आप अपना वोट बेच देते हैं तो आप अपने बेहतर भविष्य की कल्पना कभी नही कर सकते हैं।आज मोदी जी जो मुद्दा उठा रहे हैं सबसे पहले उसपर उन्हें खुद अमल करने की जरूरत है।आप पहले सांसदों, मंत्रियोंऔर खुद के खर्चे में कटौती करें।बड़े बड़े उधोगपतियों के लोन माफ़ करने में पारदर्शिता बरतें।आज राष्ट्रीय बैंक घोटाले का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है।लोन के नाम पर जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई कुछ लोगों को दे दिया जाता है और वे लोग बैंक के अधिकारियों की मिलीभगत से हजारों करोड़ रुपये लेकर रफ़ूचक्कर हो जाते हैं और सरकार हाथ पर हाथ रखे देखती रह जाती है।और इन्हीं घोटालों के चलते आम जनता को बैंक उनके पैसे का उचित व्याज नही दे पाती है।अगर बैंक द्वारा दिये गए लोन पर बैंक को उचित रिटर्न  मिले तो बैंक भी लोगों के जो पैसे बैंक में जमा रहते हैं उसपर उचित ब्याज दे सकता है। लेकिन आज बैंक के द्वारा दिया गया हजारों अरबों रुपया डूबा पड़ा है।बैंक द्वारा लोन उचित लोगों को देना चाहिए जो उसे चुकाने की हैसियत रखते हों।ये मंदिर का प्रसाद नही है जो ऐसे ही सबको बाँट दिया जाए।आज सरकारी बैंक से लोन लेने वाला व्यक्ति यही सोच कर लोन लेता है कि अब उसे चुकाना नही है।सरकारी महकमों में जो अनाप शनाप खर्च होता है उसपर भी लगाम लगनी चाहिए।दरअसल पूरे सिस्टम में ही रेवड़ियाँ बाँटी जाती है केवल उसका स्वरूप अलग अलग है।आज जरूरत है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी को ये अधिकार नहीं हो कि वह चुनाव के समय सरकारी पैसे के दम पर कोई मुफ्त की योजनाओं की घोषणा करे।अगर इसपर अभी से ये रोक नहीं लगी तो भारत की हालत भी श्रीलंका जैसे बनने में देर नही लगेगी।आज केंद्र सरकार द्वारा लोगों की स्वास्थ्य बीमा पाँच लाख तक का है जिसका फायदा केवल निजी अस्पताल उठा रहे हैं।जो इलाज पाँच हजार में हो सकता है उसके लिए वे दो लाख तक का फर्जी बिल बनाकर सरकारी पैसों का गबन कर रहे हैं।होना ये चाहिये कि सरकारी अस्पताल इतने सक्षम हों कि किसी तरह का इलाज कर सकें और वहाँ के सुविधाओं का स्तर उच्च हों ताकि किसी भी तबके को निजी अस्पताल में जाने की जरूरत ही नहीं पड़े।स्वास्थ्य बीमा पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बजाय सरकारी अस्पतालों की सुविधाएं बढ़ाई जाए।आज देश में निजी स्कूल कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं जिनमें लोगों की गाढ़ी कमाई ख़र्च हो जाती है।आज जरूरत है ऐसे सभी निजी स्कूलों को बंद करके सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता बढ़ाने की जहाँ बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिले।किसी भी शिक्षण संस्थानों में कोई भी शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए और इसका सारा खर्च सरकार को उठानी चाहिए।आलतू फालतू मुफ्त की योजनाओं में पैसे खर्च करने के बजाय ऐसी जगहों पर पैसे खर्च करनी चाहिए जिससे आम आदमी का भला होने के साथ साथ देश का भी भला हो।रेवड़ियाँ बाँटनी है तो ऐसे बुनियादी सुविधाओं के लिए रेवड़ियाँ बांटों।आज बहुत से लोगों को पीने के लिए साफ पानी तक उपलब्ध नहीं है लेकिन पिछले पचहत्तर सालों से इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है।चुनाव के समय आम जनता को वेबकूफ बनाने वाली सभी मुफ्त की योजनाओं की घोषणा पर रोक लगनी चाहिए और इसके लिये चुनाव आयोग को खुद संज्ञान लेना चाहिए।

आलेख
डॉ संजय श्रीवास्तव महू, 7000586652

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