जिंदगी की उड़ान!
Thursday 10 November 2022
Comment
जिंदगी की उड़ान
अब थक गई हूँ चलते-चलते,
अब थोड़ा आराम चाहती हूँ।
ऐ जिंदगी अब थोड़ी ठहर जा,
मैं खुद को जानना चाहती हूँ।
और से तो सुन लिया है बहुत,
अब अपनी मन की सुनना चाहती हूँ।
जीवन तो दिया है अपनों ने मगर,
अपनी जिंदगी खुद जीना चाहती हूँ।
आसान नहीं है यहाँ कोई सफर ,
पर कठिन राहों में निकलना चाहती हूँ।
नये राहों की तलाश करते हुए,
अपनी मंजिल तक पहुँचना चाहती हूँ।
जरूरी नहीं जो चाहा है वह मिल जाए,
उसे पाने की कोशिश करना चाहती हूँ।
दूसरों के उंगली पकड़कर चला है बहुत,
अब खुले आसमान में उड़ना चाहती हूँ।
लेखक
"पुष्पा बुनकर" कोलारे
0 Response to "जिंदगी की उड़ान!"
Post a Comment