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 करुणा से कम्पित नारी

करुणा से कम्पित नारी


                 दूध मेरा पीकर तुम, शक्ति मुझसे ही पाते हो

बचपन से बड़े होते तक, ममता स्नेह पाते हो

ताउम्र बनाया इंसान,इंसानियत समझ पाते हो

शक्ति मुझसे पाकर, मुझ पर ही गुर्राते हो।

मैंने दी नजर तुम्हे, इससे तुम देख पाते हो

क्या यही कसूर है मेरा, मुझे आँख दिखाते हो

पालन पोषण पाकर,बाल से युवा हो जाते हो

हर कष्ट सहे है मैने, न तकलीफ तुम पाते हो।

मेरे दूध जा कर्ज तुम, मेरे खून से चुकाते हो

इस तरह  मुझ पर अपना पौरुष दिखाते हो

दूध मेरा पीकर इस दूध को ही लजाते हो।

इस समाज में अपने को पुरुष कहलाते हो

हर वक्त मेरे सीने पर तुम नजर जमाते हो

मेरे सीने में छुपी ममता क्यो भूल जाते हो

औरत ने ही दिया जीवन, क्यों ये झुठलाते हो।

तुझे ढकने सब कष्ट सहे, मुझे धूप दिखाते हो

बड़े होकर मेरा जीवन, नर्क क्यों बनाते हो?

तेरे हर आँसू पर, मैंने हर खुशियाँ कुर्वान किया

क्या हुआ आज तुन्हें,मेरे आँसू देख नही पाते हो?

इंसान होकर तुम, सिर्फ हवस के खातिर

इंसान से क्रूर नर पिशाच हैवान बन जाते हो?

नारी को क्यों बस एक, उपभोग समान बनाते हो

तन को तार-तार करने में, जरा नही पछताते हो।

हमे समाज की मार्यादा सिखलाने वालों..

तुम अपनी ही मर्यादा क्यों भूल जाते हों?

मत नोचो नारी की अस्मत, खाक में मिल जाओगे

अस्त्तिव होगा खत्म ऐसा, पछता भी न पाओगे।


लेखक

श्याम कुमार कोलारे

छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश

मोबा. 9893573770

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