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गृह-कलह के कारण और निवारण

गृह-कलह के कारण और निवारण

गृह-कलह के कारण और निवारण

घर एक विश्राम स्थल है, जहाँ व्यक्ति दिनभर की थकान के बाद, अपने परिवार के साथ शांतिपूर्ण जीवन बिताना चाहता है। जो सुख, सौजन्य और आत्मीयता की भावना व्यक्ति को अपने परिवार में मिलती है, कहीं अन्यत्र नहीं मिल सकती । परिवार के सभी बुजुर्ग सदस्य चाहते हैं कि उनके बच्चे और उनके परिजन श्रेष्ठ बनें, आपस में मिल-जुलकर रहें । उन्हें प्रेम का महत्त्व बतलाते हैं । मिल-जुलकर रहने के लाभों से अवगत कराते हैं और कुछ न कुछ उपदेश देते रहते हैं,

किंतु उसका कोई स्थाई प्रभाव नहीं पड़ता। एक-आध दिन के लिए सब शांतिपूर्वक रहते हैं और फिर झगड़ने लगते हैं । यह प्राय: अधिकतर घरों में देखने को मिलता है । आज के समय में व्यक्ति है जितना सुशिक्षित, योग्य व स्वतंत्र विचारों वाला हो रहा है, दिनोंदिन उतने ही तनाव परिवारों में दिखाई क देते हैं। जो गृह-कलह को जन्म देते हैं । गृह-कलह के कारण क्या होते हैं? इस पर विचार किया जाए तो यही निष्कर्ष सामने आता है कि अहंकारवश छोटी-छोटी बातों को तूल देना, आपस । में तालमेल न बिठाना, हेकड़ी दिखाना, भावनात्मक असंतुलन, स्वार्थ एवं पारस्परिक अविश्वास ही गृह-कलह की नींव डालते हैं। ये कारण प्रायः धनी-निर्धन, उच्च-निम्न, शिक्षित-अशिक्षित सभी वर्गों में पाए जाते हैं ।

विगत वर्षों में शिक्षा का अभाव ही गृह-कलह का मुख्य कारण माना जाता था। हालाँकि आज भी हमारे देश में शिक्षा का औसत बहुत कम है, फिर भी पहले की तुलना में शिक्षितों की संख्या पर्याप्त हो गई है। समझा जाता था कि शिक्षित होने पर व्यक्ति में सहनशीलता, पारस्परिक सामंजस्यता, समस्याओं को सुलझाने की योग्यता व समझदारी उत्पन्न होगी और वे परिवार की उलझनों को सुलझा सकेंगे। आपस में तालमेल बिठाकर शांतिपूर्ण घरेलू वातावरण बना सकेंगे, पर हो इसके विपरीत रहा है। शिक्षित पति-पत्नियों में आपसी मनमुटाव कुछ कम नहीं है। परिवार के अन्य सदस्यों के साथ उनका तालमेल न बैठना। सामान्य सी बात होकर रह गई है। हर बात के दो पहलू होते हैं। शिक्षा का भी प्रभाव दो भिन्न रूपों में दिखाई देता है। एक परिवार में तो शिक्षा आपसी समझदारी, संतुलन तथा उदारता, का आधार बनती है। ऐसे परिवारों में शिक्षित बेटेबहू अपनी सहनशीलता, योग्यता, अच्छी सोच व समझदारी से घर के प्रत्येक व्यक्ति में प्यार व सद्भाव पैदा कर देते हैं। यहाँ तक कि विवेक का इस्तेमाल करके बिखरे हुए परिवार को भी अपनी माधुर्यता, सद्व्यवहार और सौजन्यता से प्रेम की माला में पिरो, लेते हैं। दूसरी तरफ वही शिक्षा व्यक्ति के अभिमान, अहंकार और झूठे स्वाभिमान को जन्म देती है। अपनी बुद्धि, वाक्पटुता और चातुर्य का प्रयोग कर बाल की खाल उधेड़ने वाली होती है। ऐसे परिवारों में घर के सदस्य छोटी-छोटी व अर्थहीन बातों का गूढ़ अर्थ निकालकर, बात का बतंगड़ बना देते हैं। जरा-जरा सी बातों को गंभीर रूप में लेकर प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेते हैं। परिणामतः परिवार गृह-कलह में डूब जाते हैं। यदि हम कलह के कुछ मुख्य कारणों पर गौर करें और उनके निवारण का प्रयत्न करें तो परिवार गह-कलह के संताप से बच सकते हैं।

अविवेक व नासमझी- ऐसे व्यक्ति जिन्हें अपने ही गुणों में जीवन का निचोड़ नजर आता है, वे दूसरों के सद्गुणों को देख ही नहीं सकते। अपने ही गुणों को प्रमुखता देने के कारण, वे परिवार व समाज में अपनी ही बात को सर्वोपरि रखते हैं और कलहकटुता को जन्म देते हैं। उनका यह मानना कि वे कोई गलती नहीं कर सकते; दूसरे ही गलती पर हैं, आपस में दूरियाँ बढ़ाने का कारण बनते हैं। यदि थोड़े संयम और धैर्य से काम लिया जाए अथवा विवेक व समझदारी से विचार किया जाए तो थोड़े से प्रयास से ही इस कमी को दूर किया जा सकता है।

संदेह व अविश्वास- पारिवारिक जीवन में ऐसे अवसर भी आते हैं, जब एक-दूसरे के बारे में संदेह पनपने लगते हैं। भीतर ही भीतर पनपता हुआ  संदेह, घृणा-विद्वेष रूपी विषवृक्ष बनकर खड़ा हो जाता है तथा आपसी मनमुटाव एवं विरोध पैदा कर देता है। यदि आपस में विश्वास रहे तो जाँच-पड़ताल करके, निःसंकोच भाव से एक-दूसरे से पूछकर संदेह का निवारण किया जा सकता है।

स्वार्थ भावना- परिवार में खाई बढ़ने का एक अन्य कारण यह भी है कि अपनी ही धुन में मस्त रहकर, दूसरे की जरूरतों और भावनाओं की उपेक्षा की जाती है। यह उपेक्षा वस्तुत: उनकी छोटी सोच की परिचायक है। अकसर देखा जाता है कि बाहर के अपने मित्रों व परिचितों की हारी-बीमारी, सुख-दुःख, प्रसन्नता-हताशा में घर के सदस्य बढ़-चढ़कर रुचि दिखाते हैं और उनकी मदद करने को तैयार रहते हैं; क्योंकि उससे कोई न कोई स्वार्थ सिद्ध होता है। परंतु अपने परिवार के दूसरे सदस्यों की बीमारी, परेशानी या किसी समस्या पर गौर करने की जरूरतभी नहीं समझते, सहानुभूति और सहयोग तो दूर की बात है। यदि आपस में भी हम एकदूसरे के सुख-दु:ख को बाँट सकें, समस्याओं को सुलझाने का प्रयास कर सकें, परस्पर आत्मीयता और सहयोग की भावना रख सकें तो सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बन सकता है।

ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा- ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा भी गृह-कलेश का एक मुख्य कारण है। कभी-कभी बड़े-बुजुर्ग घर के एक सदस्य के गुणों की ज्यादा प्रशंसा करते हैं, दूसरे को वैसा करने की नसीहत देते है हैं, उसकी कमियाँ बताते हैं तो ईर्ष्या का जन्म होता है है। आगे चलकर एकदूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लगी रहती है और मनमुटाव का कारण बनती है। जिससे आएदिन गृह-कलेश रहता है। हर सदस्य के अपने अलग-अलग गुण होते हैं। उनके गुणों के अनुसार हर एक की प्रशंसा की जाए, उन्हें प्रेरणा दी जाए। कमजोर वर्ग को थोड़ा प्रोत्साहन दिया जाए तो वातावरण सामंजस्यपूर्ण बना रहेगा।

भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण- सास-बहू के पारिवारिक झगड़ों का अधिकांश कारण भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण है। माताएँ अपनी बहू को बेटी की तरह मानने लगें, उसकी कमियों को प्यार से समझाएँ और उसके काम की तारीफ करें। अपनी बेटी की तरह ही उसकी सुख-सुविधाओं, इच्छाओं और उसकी भावनाओं का भी ध्यान रखें। अपने घर के रीति-रिवाजों को समझने के लिए उसे अवसर दें। उसी प्रकार बहुएँ भी अपने पति के परिवार वालों , को अपने घर के लोगों की तरह ही मानें, उन्हें सम्मान , दें। अपनी सास व ननद में अपनी माँ और बहन की ही छवि देखें, उनका ध्यान रखें और मेरे-तेरे की भावना न आने पाए। परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें तथा अपने सुखद भविष्य के सपने परिवार की एकता में देखें तो संतुलन बना रह सकता है।

इस प्रकार शांत व सुखद जीवन व्यतीत करने के लिए हमें स्वार्थ और भेदभाव का त्याग करना होगा। आत्मीयता, सहनशीलता. एकरूपता, उदारता, सहानुभूति जैसे गुण अपने अंदर उत्पन्न करने होंगे। साथ ही विश्वास एवं सहयोग की भावना रखनी। होगी, तभी घर को स्वर्ग बनाया जा सकता है।

 

लेखक / रचनाकार

श्याम कुमार कोलारे

सामाजिक कार्यकर्त्ता, छिंदवाड़ा

संपर्क : 9893573770


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