शिक्षा के सृजनात्मक बदलाव से परिपूर्ण है नई शिक्षा निति (NEP 2020), वास्तवित ज्ञान और सर्वांगीण कौशलों के लिए मिलेंगे नए अवसर l
शिक्षा के सृजनात्मक बदलाव से परिपूर्ण है नई शिक्षा निति(NEP 2020), वास्तवित ज्ञान और सर्वांगीण कौशलों के लिए मिलेंगे नए अवसर l
मनुष्य के जीवन में बदलाव एवं सफलता के शिखर तक पहुंचें में शिक्षा एक अहम भूमिका निभाती है l वगैर शिक्षा का मनुष्य अपनी बुद्धि का विकास नहीं कर पाता है l शिक्षा से अभिप्राय केवल पुस्तकीय ज्ञान से नहीं है वल्कि उसके जीवन सहज रूप के चलने एवं जीवन का लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहायक हो ऐसा ज्ञान एवं सीख से है l ऐसा भी नहीं है की शिक्षा यानि आज के समय के माने जाने विषय आधारित ज्ञान से है वल्कि वह ज्ञान को मनुष्य को तार्किक, बुद्धिकौशल से परिपूर्ण एवं वह अपने साथ-साथ समाज को भी उन्नति की शिखर तक ले जाएँ l पुराने समय में जब शिक्षा का इतना प्रचार-प्रसार नहीं था उस समय भी मनुष्य बहुत बुद्धिमान एवं तार्किक ज्ञान से परिपूर्ण हुआ करता था l उस समय मनुष्य अपनी आवश्यकताओं के अनुसार कौशल सीखा करते थेl जीवनमूलक ज्ञान एवं सुनियोजित ज्ञान शिक्षा के रूप में एक-पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्वतः ही हस्तांतरित होते रहते थे l उनके लिए उस समय विद्यालय या महाविद्यालय या ज्ञानपीठ का विस्तार नहीं हुआ था, और यदि कंही इस प्रकार की संरचनाये होती भी थी तो इस पर किसी वंशविशेष व ओहदा का अधिकार होता था l शायद हमारे पूर्वजों ने शैक्षिक ज्ञान अवश्य नहीं पाया; परन्तु उन्होंने ज्ञान एवं बुद्धि कौशल से अपने जीवन को सरल एवं सहज बनाने के लिए बहुत से कौशल से अपना ज्ञान का सृजन कर रखा था l उस ज्ञान को और उन्नत और विकासात्मक बदलाव के चलते शिक्षा के नए-नए प्रकार के बदलाव और शोध किये गए जिससे की शिक्षा को बहुआयामी बनाया गया l शिक्षा के बहुआयामी बदलाव की बदौलत आज हम इतने उन्नत हो गए है की आज भारत विश्वगुरु के रूप में शोभायमान है l
समय के बदलाव के साथ-साथ शिक्षा पद्धति में नए-नए बदलाव की आवश्यकता होती गई एवं बहुत से बदलाव भी किये गए जिससे शिक्षा केवल डिग्री न बनकर जीवनयापन की एक महत्वपूर्ण कुंजी बन सके l शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो जीवन की सभी आवश्यकताओं को भी पूरा करें और जीवन के अंतिम लक्ष्य तक पहुंचने में भी सहयोगी होl स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि शिक्षा का उद्देश्य हो जो मनुष्य को मनुष्य बना दे l मनुष्य को मनुष्य बनाने वाली शिक्षा में सारी चीजें समाहित है l शिक्षा ऐसी हो- जो ज्ञान दे, कौशल दे, नैतिकता से परिपूर्ण हो, नागरिकता के संस्कार द्वारा प्रदाय ज्ञान से संस्कारों से परिपूर्ण हो l भाषा ज्ञान-विज्ञान का ऐसा आधार हो जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित कराया जाए l हम कुछ नया करते हैं तो उसे जोड़ते हुए नया शोध एवं श्रृजन के साथ यह ज्ञान बच्चों में डालने का कार्य करें l वर्तमान शिक्षा पद्धति में एक विषय पर आधारित ज्ञान की परंपरा थी जैसे किसी विद्यार्थी ने कलासंकाय की पढ़ाई कर रहा है तो वह केवल उसी विषय में आगे पढ़ाई करेगा वह अन्य विषय जैसे विजान, गणित, कृषि विज्ञान आदि की पढ़ाई नहीं कर सकता l क्या विधार्थी को केवल एक ही दिशा का ज्ञान हासिल करने के लिए बाध्य नहीं होना पड़ रहा है ? इस विसंगतियों को दूर करने एवं सर्वांगीण ज्ञान एवं कौशल के लिए प्रेरित करने के लिए नई शिक्षा नीति में बहुआयामी शिक्षा पद्धति कई नए रास्ते खुलेंगे l अब प्रतिभावान छात्र अपनी रूचि के अनुसार अपने ज्ञान को संचित कर सकते हैं l शिक्षा एकांकी नहीं होनी चाहिए; मतलब विद्यालय से बच्चों को संपूर्ण प्राप्त होl विद्यार्थी उन सभी विषयों का ज्ञान ले सकता है जो वह चाहते हैं; हम ज्ञान के लिए छात्रों को बांध नहीं सकते l
पढ़ाई की पद्धति रट्टू न बनकर समझ परक बनाया जाए; जिससे छात्र अपने बुद्धि एवं कौशलों को सही वास्तविकता रूप में उपयोग कर सकें l उसके द्वारा सीखी गई शिक्षा उसके रोजगारपरक बना सके, अपने जीवन को सृजनात्मकता से पूर्ण बना सके l इसका फायदा समाज, प्रदेश एवं देश को भी उन्नत बनाने में एवं एक नई दिशा प्रदान करने में होगाl विद्धार्थी अपना ज्ञान स्वाभाविक एवं वास्तविक रूप से सीखेंl पढ़ने के बाद यदि वह छात्र रोजगार ना पा सके तो ऐसी शिक्षा का कोई मोल नहीं; ऐसी शिक्षा अर्थहीन हैl इस प्रकार की शिक्षा पाकर विद्यार्थी कुंठा का शिकार होता है l शिक्षा को वास्तविकता से जोड़ने का प्रयास किया जाना नित्तांत आवश्यक है जिससे विद्धार्थी अपने आप को सावित कर सके कहीं अपने आप को ठगा महसूर न करे l
नई शिक्षा नीति में स्वभाविक शिक्षा के माध्यम से शिक्षा एवं सर्वांगीण कौशल को देने वाले कौशलों को बढावा देने वाली शिक्षा की ओर ले जाने वाली निति का पिटारा है; छात्रों में सर्वांगीण कौशलों का विकास कर रोजगारपरक बना सके, शिक्षा के बाद जीवनमूलक बना सकेl यदि शिक्षा आजीविका प्रदान करने का सामर्थ्य ना दे सके ऐसी शिक्षा अधूरी शिक्षा है इससे छात्र केवल काम चलाऊ जीवनयापन कर सकता है कोई नया सृजन नहीं l ऐसी शिक्षा के बाद यदि कोई बच्चा बिगड़ता है इससे केवल बच्चों का दोष नहीं होता यह दोष पूरे समाज का होता हैl इसमें हमारी शिक्षा व्यवस्था और इस प्रकार का अधूरा ज्ञान देने का समाज दोषी है कि हम इसे सही संस्कार नहीं दिला पाए l
नई शिक्षा नीति में बच्चों को संस्कारित एवं नैतिक बनाने के लिए एक नई पहल की गई हैl बच्चों की शिक्षा में महापुरुषों की जीवनी, संस्मरण, आत्मकथाएं, प्रेरकप्रसंग आदि का समावेश करने हेतु पहल की गई है जिससे बच्चे अपने नैतिक, व्यवहारिक गुणों को विकसित कर सकेlबच्चों को नागरिकता के संस्कारों से भरना माता-पिता एवं समाज की जिम्मेदारी है, समाज को रचनात्मक भूमिका का निर्वहन करना है l देश दुनिया में जो अच्छा हो रहा है उसे हमें सीखना चाहिए; हमारे पास जो अच्छा है उसे हमें सिखाना भी चाहिए, इससे ज्ञान का संचार से देश एवं समाज समृद्ध हो सके l महाविद्यालय स्तर पर पहुचकर छात्र विषय विशेष का ज्ञाता होना चाहिए l विश्वविद्यालय ज्ञान के शोध केंद्र होता है, बच्चों में नए-नए आयामों एवं ज्ञान का सृजन के दिशा अनुरूप पहल करना इन केन्द्रों का धेय होना चाहिए; महाविद्यालय ज्ञान उद्गाव स्रोत होते है, बिना शोध के ज्ञान में संपूर्णता नहीं आती है l राष्ट्रीय शिक्षा नीति में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन का उल्लेख भी किया गया है इस राष्ट्रीय शोध संस्थान के माध्यम से नए-नए ज्ञानवर्धक शोध किए जाएंगे एवं शिक्षा ज्ञान एक नई दिशा प्रदान किया जाएगा l राज्यों को अपने स्तर पर भी राज्य शोध एवं ज्ञान संस्थानों की स्थापना करना चाहिए जो विद्यालय एवं महाविद्यालय के संयुक्त सहभागिता से संचालित हो जिससे समस्त संसाधन एवं ज्ञान का साँझा किया जा सके l बच्चों को वास्तविकता से जोड़कर एवं उद्देशपूर्ण व बहुआयामी कौशल से जब तक पूर्ण नहीं किया जायेगा, बच्चों में पूर्ण रूप से सर्वांगीण विकास की कल्पना नहीं की जा सकतीl
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