रोजगारोन्मुखी शिक्षा युवाओं की बन सकती है सफलता की कुंजी
“युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए रोजगारपरक शिक्षा में देना होगा विशेष ध्यान”
“स्वामी विवेकानन्द जी का कहना था कि युवाओं को ऐसी शिक्षा देना चाहिए जिससे युवा आत्मनिर्भर बन सके, उन्हें आजीविका के लिए संघर्ष न करने पड़ें l”
“शिक्षा मनुष्य को अपने जीवन को उज्जवल करने का मार्ग सशक्त करती है l शिक्षित व्यक्ति अपने आप को औरो से हटकर समाज में अपना एक अलग मुकाम हासिल करता है l शिक्षा प्राप्त करने के बाद मनुष्य में बुद्धि का विकास हो जाता है वह अपने जीवन के अच्छे एवं बुरे का अंतर भलीभांति समझने लगता है, यह तभी संभव होगा जब मनुष्य को सही दिशा में और वास्तव शिक्षा का कौशल प्रदान किया जाए l”
महाभारत और रामायण काल के लेखो के आधार पर हमें साक्ष्य मिलता है कि पुरानी शिक्षा पद्धति का साक्षर होना मात्र उद्देश नहीं था वल्कि विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ उन्हें जीवन जीने की कला भी सिखाई जाती थी l अस्त्र, शस्त्र, शास्त्र, हुनर, रोजगारपरक ज्ञान, संस्कार, व्यावहारिकता और आनंदमय जीवन के मुख्य लक्ष्यों का ज्ञान गहनता से प्रदान किया जाता था l यही कारण था कि हमारे पौराणिक ग्रंथों में एक-एक किरदार अपने विशिष्ठ गुण के साथ एक विशेष पहचान एवं विशेषज्ञता की छबि को स्पस्ट करते थे l हम सभी भगवान राम, कृष्ण, सुदामा, हनुमान आदि को एक आदर्श की तरह मानते है, उनका जीवन से हमें बहुत सा प्रासंगिक ज्ञान एवं कौशल के बारे में पता चलता है एवं जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है l इन सभी बातों को यहाँ कहना इस लिए ज़रूरी है क्योकि इन सभी को आदर्श मानने के पीछे उनके गुण, आचरण एवं ज्ञान को आधार माना गया है l और उनका यह सब गुण हमारे लिए लाभदायक होता है इसीलिए हम सब इन किरदारों का अनुशरण करते है l उनका यह कौशल, ज्ञान एवं क़ाबलियत के पीछे की बात करें तो उनके पीछे उनके महान गुरुओं, उनको इस प्रकार के राह प्रदान करने वाले गुरुकुलो, आश्रम, एवं उबके आचार्यों का समर्पण था जिन्होंने ऐसे आदर्शों को बनाने के लिए अपना सर्वश्व प्रदान किया l हमें आज इसी प्रकार की शिक्षा एवं गुरुकुलो की आवश्यकता है जो वास्तविक शिक्षा की और अग्रसर करें l
आज हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था की जर-जर हालत को देख लीजिये, सरकारी स्कूल की पढ़ाई और यहाँ की सुविधाओं के बारे में तथ्य किसी से छिपा नहीं है l सरकारी स्कूल के भवनों की जर-जर हालत, छतों से टप-टप रिसता पानी और बाकि सुविधाओं राह देखते स्कूल के फर्श पर किसी दरी एवं चटाई में बैठे बेचारे बच्चे अपनी किस्मत को कोसते मिल जायेंगे l वास्तवित स्थिति देखना है तो किसी ऐसे दूर-दराज गाँव के स्कूलों को जाकर देख लीजिये, वहाँ के बच्चे जिनको स्कूल की ड्रेस तो मिली है परन्तु वह ड्रेस में कम सामान्य कपड़ो में स्कूल में मिलेंगे, बच्चे स्कूल के समय बच्चे अपने माता-पिता के साथ खेतों में या मजदूरी के काम में लगे हुए मिल जायेंगे l इन सबका कारण शायद शिक्षा के प्रति उनकी उदासीनता हो सकती है या बच्चों के प्रति स्कूल की उदासीनता हो सकती है l बात कोई भी हो परन्तु इस प्रकार के माहौल में शिक्षक ही एक ऐसी कड़ी होती है जिसका पूर्ण दायित्व हो जाता है कि इस प्रकार के गाँव या शहर में बच्चों को वास्तविक शिक्षा देने के लिए प्रेरित करें l
पारम्परिक शिक्षा पद्धति में अधिकतर देखा गया है कि बच्चों को केवल रट्टू पंडित बना दिया गया है l हर वर्ष विद्यालय-महाविद्यालयों से लाखों की संख्या में विद्यार्थीयों की भीड़ निकल रही है परन्तु इनने से कितनो को नौकरी मिल पाती है शायद बहुत कम l परन्तु बाकि का क्या? ये अपने को साबित करने के लिए चक्कर काटते-काटते आत्मग्लानी के बोध से ग्रसित हो जाते है l युवावस्था में युवों की सबसे बड़ी चुनौती रोजगार पाना एवं अपने को समाज में स्थापित करने के लिए सामंजस बनाना होता है l स्कूल की डिग्री वाली शिक्षा उन्हें पढ़े-लिखे तो बना देती है परन्तु पूर्ण कौशल से पूर्ण करने में कहीं न कहीं कुछ कसर बाकी रह जाती है l इस कारण से वह अपने रोजगार के लिए संघर्ष करता रहता है l पढ़ाने के बाद सभी की एक ही सोच होती है कि सरकारी नौकरी मिल जाए या किसी निजी कम्पनी में जॉब मिल जाये l दोनों जगह युवाओं को संघर्ष करना पडता है l सरकारी नौकरी के लिए डिग्री का बहुत अधिक महत्व रहता है, बिन डिग्री यहाँ कुछ नहीं होता; वही निजी कामों के लिए कौशलता का विशेष महत्व होता है l आज के संस्थानों में बच्चे कौशल सीखने के बजाये डिग्री के लिए अधिक दिलचस्वी लेते नजर आते है इसीलिए निजी क्षेत्रों में इस प्रकार के डिग्रीधारी अधिक देर तक नहीं टिक पाते है l
जब तक हम युवावर्ग को उनकी शिक्षा में रोजगारपरक शिक्षा में माध्यम से तैयार नहीं करेंगे, युवाओं की पढ़ी-लिखी फौज यूँ ही बढती जाएगी और एक दिन बेरोजगारी का ऐसा बिस्फोट होगा कि सब ओर तवाही मच जायेगी l बेरोजगारी एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में बिकराल रूप में देश के समक्ष आने में देर नहीं लगेगी l स्कूल एवं महाविद्यालयों में रोजगार के लिए वास्तविक शिक्षा दिए जाने की आवश्यकता है l जिसको सरकारों को गंभीरता से लेकर युवाओं को आगामी समय में देश की उन्नति के लिए तैयार करने की आवश्यकता है l तभी देश का वास्तविक विकास संभव है l
लेखक
सामाजिक कार्यकर्त्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
shyamkolare@gmail.com
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