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शिल्पकार धरा के

शिल्पकार धरा के

 //शिल्पकार धरा के//

अंधेरों में भी रोशनी तलाशने की आदत है हमारी
   पत्थरों की चिंगारी से रोशन कर दें ये दुनियाँ सारी
      भले ही गम हो दुनियाँ का बेसुमार पहाड़ रोके रास्ता
         हौसलों की नोक से पहाड़ो को झुकाना आदत हमारी।

मेहनत करना भी एक हुनर है दुनियाँ में जीने के लिए 
   चंद रोटी ही नसीब है पेट की आग बुझाने के लिए
      शक्ति अपनी पहचानने को वक्त कहाँ मिलता है
          भूख और आभाव में सारा का सारा दिन खपता है।

तेज धूप में झुलसना एक खेल से हो गया हमारा
   छाँव कल्पनाओं में दिखती है इसका नही सहारा
       दिन-रात की मेहनत से अच्छे दिन नही आये है 
           सबकी अटारी बनाये सबकी भूख हम मिटाए है।

मेहनत करके हमने दुनियाँ को खूब सजाए है
   इसकी खूबसूरती में नित्य ही चारचांद लगाए है
      हाथ की खुरदुरी लकीरे पर चिकनी कृति बनाये है
         रात में दिन करने की कला भी हमने ही लाये है। 

हमारा भी धड़ता है सीना बहता हममें भी रुधिर है
   अन्न जल से चलती काया इसके बिना सब धूमिल है
       बस विनती है कर भरे वालो से हमारे भी कर भरे हो
          दुनियाँ की खुशियाँ हमे भी अधिकार से नसीब हो। 

लेखक
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिंदवाड़ा
मोबाइल 9893573780

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