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अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, भाषाई समृद्धि का प्रतीक

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, भाषाई समृद्धि का प्रतीक


“कोस कोस में पानी बदले, चार कोस में बानी

हिन्द धरा भाषा की खान, इसकी अमर कहानी

मेरी बोली मेरी भाषा, माँ ने जैसा मुझे सिखाया

इसी भाषा से ही माँ ने, सबको गले लगाया l

 

हम सभी जानते हैं भाषा मनुष्य के जीवन में बहुत अहमियत एवं भूमिका होती है कोई भाषा एक भाषामात्र न होकर वह सभी की अभिव्यक्ति का साधन भी होता जिससे प्राणी अपने अभिव्यक्ति किसी दूसरे के साथ साँझा करता है और उनकी संवेदना के आधार पर उससे जुडा होता है l यह एक बहुत समृद्धशाली एवं व्यापक सर्जन होता है जो किसी बोली से प्रारंभ होकर भाषा बन जाती है एवं यह किसी विशेष सभ्यता एवं संस्कृति की पहचान बन जाती है l वैसे दुनिया के प्रारंभ से ही यहाँ बहुत सी भाषा का उदय हुआ एवं इस भाषाओ ने अपना स्वयं का एक समृद्धशाली इतिहास बनाया इन सभी के अपनी-अपनी भाषा एवं पहचान को लेकर दुनिया में कई शोध एवं इसका विस्तार हुआ है, सभी ने अपनी भाषा को विशेष पहचान पाने एवं इसे सम्रद्ध बनाने के लिए काफी प्रयास किया होगा, इसीलिए यह सर्वव्यापक हो पाई अपनी मातृभाषा पर सभी को अभिमान होता है, आखिर हो भी क्यों न ! यह उस व्यक्ति विशेष की सम्रद्धि एवं व्यक्तित्व की पहचान होती है भाषा एक ऐसा माध्यम होती है जिससे देश ही नहीं बल्कि विदेशों के साथ संवाद स्थापित किया जा सकता है ।

साल 2000 में 21 फरवरी को यूनाइटेड नेशन ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया था। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने के पीछे भी एक बहुत अहम इतिहास है l 21 फरवरी 1952 को ढाका यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तत्कालीन पाकिस्तान सरकार की भाषायी नीति का कड़ा विरोध जताते हुए अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए विरोध प्रदर्शन किया। पाकिस्तान की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों का दमन करने की भरसक कोशिश की गई, प्रदर्शनकारियों पर गोलीवारी भी किया परन्तु प्रदर्शनकारी नहीं झुके उन्होंने अपना प्रदर्शन जारी रखा लगातार विरोध के बाद तात्कालीन सरकार को बांग्ला भाषा को आधिकारिक दर्जा देना पड़ा। इस भाषायी आंदोलन में अनेक युवाओं ने भाषा का अस्तित्व बचने के लिए अपनी जान की कुर्वानी दी पड़ा। बांग्लादेश में वर्ष 1952 से ही लगातार मातृभाषा या कहे शहीद दिवस मनाया जाता है |और इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश भी होता है । शहीद हुए युवाओं की स्मृति में यूनेस्को ने पहली बार 1999 में 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। लेकिन वर्ष 2000 को संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अंतर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए 21 फरवरी को ही अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर दोहरायाहर देश में इंटरनेशनल मदर लैंग्वेज डे या भाषा डे और लैंग्वेज मूवमेंट डे और भाषा शहीद दिवस के नाम से जाना जाता है । अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के दिन यूनेस्को और यूएन एजेंसियां दुनिया भर में भाषा और संस्कृति से जुड़े उस देश की अपनी संस्कृति को एक पहचान ,उत्थान ,युवा पीढ़ी को उससे रूबरू कराने के लिए विभिन्न तरह के कार्यक्रम आयोजित कराते हैं ताकि इस दिवस को मनाने के उद्देश्य की पूर्ति हो और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषाई एवं संस्कृति विविधता और बहु भाषा को बढ़ावा मिले ।

हमारे देश की भाषा हिन्दी उसमें से एक भाषा है । भारत मे एक बड़ी मशहूर और बहुत पुराणी कहावत है “कोस कोस पर पानी बदले 4 कोस पर बानी” यानी भारत में हर 4 कोस पर भाषा और वहाँ की स्थानीय बोली बदल जाती है और वहां की संस्कृति में कुछ फ़र्क़ आ जाता है । भारतवर्ष एक विशाल एवं समृद्ध विसरत से घिरा है इसी हम सब में बहुत अच्छे से संयोजकर रखा है जब कोई एक स्थान से दूसरे स्थान पर नई बस्ती बसाते हैं तो वे एक से अधिक भाषा बोलने-समझने में सक्षम हो जाते हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से देश की राजभाषा होने के साथ-साथ देश में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है 2011 की जनगणना के अनुसार भारत के 43.63 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते हैं बंगाली भारत में दूसरी सबसे अधिक बोलने वाली भाषा है इसमें 12 फीसद द्विभाषी है और उनकी दूसरी भाषा अंग्रेजी है। हिंदी और पंजाबी के बाद बांग्ला भारत में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। बांग्ला बोलने वाले 9.7 करोड़ लोगों में 18 फीसद द्विभाषी हैं। भारत की सबसे पुरानी एवं पुराणिक भाषा संस्कृत को देश में 14 हजार लोगों ने अपनी मातृभाषा बनाया है । संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व में 6900 लगभग भाषाएं बोली जाती हैं इनमें 90 फ़ीसदी भाषाएं एक लाख से भी कम लोगों द्वारा बोली जाती हैंदुनिया की कुल आबादी में तकरीबन 60% लोग 30 प्रमुख भाषाएं बोलते हैं जिसमें 10 सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में जापानी, अंग्रेजी, रूसी, हिन्दी, बांग्ला, पुर्तगाली, अरबी, पंजाबी, मंदारिन और स्पेनिश है अगले 40 साल वर्ष में 4000 से अधिक भाषाओं का अस्तित्व खत्म होने की कागार है। भारतीय भाषाओं पर किया गया पीपुल्स लिंग्विस्टि सर्वे ऑफ इंडिया (पीएलएसआई) का आकलन तो और भी भयावह तस्वीर पेश करता है। देश के विभिन्न राज्यों में किए गए भाषायी सर्वेक्षण में पाया गया है कि पिछले 50 सालों में 220 भाषाएं दम तोड़ चुकी हैं। सर्वेक्षण में कुल 780 भारतीय भाषाओं का पता लगाया था। डरने वाली बात यह है कि इनमें से 600 भाषाओं पर खतरा मंडरा रहा है। पीएलएसआई के अध्यक्ष गणेश देवी ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में माना कि घुमंतू समुदाय और तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की भाषा सबसे अधिक खतरे में हैं(देखेंघुमंतू समुदाय की भाषा पर खतरा सबसे अधिक,)

मातृभाषा के अस्तित्व को बचाने के लिए भारत सरकार भी कई तरह से कदम उठा रही है। इसी क्रम में 34 साल बाद आई नई शिक्षा नीति में भी मातृभाषा को कई अहम फैसले लिए गए हैं। इसके तहत देश में अब अगले सत्र से मातृभाषा में पढ़ाई कराई जाएगी। नई शिक्षा नीति 2020 के तहत एकेडमिक ईयर 2021 से स्कूलों में पांचवी कक्षा तक अनिवार्य और अगर राज्य चाहें तो आठवीं कक्षा तक अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करवा सकेंगे। भाषाओं के संरक्षण के लिए सरकार भी अपने स्तर पर पहल कर रही है; मातृभाषा के प्रचार-प्रसार और इनके अस्तित्व की रक्षा के लिए भारतीय भाषाओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए केंद्रीय बजट 2021 में भी उनके संरक्षण और अनुवाद के लिए विशेष प्रावधान किया गया है। इसके लिए देश के कई शहरों में केंद्र बनाए जाएंगे। इसमें 22 भारतीय भाषाओं के अलावा क्षेत्रीय और विलुप्त हो रही भाषाओं पर शोध और इन्हें पहचान दिलाने पर काम होगा। भारत को विविधताओं में एकता वाला देश माना जाता है। भाषाओं की विलुप्ति का अर्थ है इन विविधताओं से हाथ धो बैठना। भाषाओं के संरक्षण के महत्व को हाल ही में बनी शिक्षा नीति में स्वीकार किया गया है और प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा मातृभाषा में देने की वकालत की गई है। भाषाविद मानते हैं कि अगर इस नीति पर ठीक से अमल किया जाए तो स्थितियों में सुधार आ सकता है। मातृभाषा में मिला ज्ञान उन्नति के द्वार खोल सकता है। आज विश्व मातृभाषा दिवस पर हम सब भारतीयों की ज़िम्मेदारी हैं हम अपनी मातृभाषा का इस्तेमाल करे बल्कि प्रचार भी करे जिस तरह से भारत में साहित्यिक मंचों का गठन हो रहा है हमको आशा नही विश्वास है भारत की मातृभाषा दिन दूनी रात चोगनी बढ़ाये।

“अपनी भाषा गर कोई बोलेसहोदर जैसा लगता है

मातृभाषा अहसास अनुभूतिभाव शब्दो में कहता है।

मातृभाषा पर गर्व करें हमये ममतामयी सी छाँव

संरक्षण कर इसे बचायेंइससे मिलता हमको ठाव।“

 

 

लेखक :

श्याम कुमार कोलारे

साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्त्ता

छिन्दवाड़ा (मध्यप्रदेश) 

मोबाइल 9893573770

shyamkolare@gmail.com

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