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 वफादार और ईमानदार क़दम हर युग मे जरुरी Loyal and Honest Steps Needed in Every Age

वफादार और ईमानदार क़दम हर युग मे जरुरी Loyal and Honest Steps Needed in Every Age


किसी भी क्षेत्र में कार्यकुशलता अर्जित करना प्रयाप्त हीं नही बल्कि उस कार्य के  प्रति ईमानदारी,    समर्पण की आवश्यकता होती है किसी को उपेक्षित करके सीमा को लांघना, अपनी सफलता को जताना, दिखावा करना अथवा अपने ही कृत्य को रेखांकित करना किसी भी दृष्टि में हितकारी/दीर्घगामी नहीं हो सकता है।

आज हम समाज के विभिन्न तबकों से कुछ प्रकिया की बात कर रहे है जो लोग सिर्फ अपनी बातों से आदर्शों की झड़ी लगा देते है और अपने आपको सर्वोपरि सिद्ध करने हेतु अपने बाल संवारते है फिर फेसबुक पर अटका देते है उसके उपरांत कुछ तर्को द्वारा कुछ भाषण संभाषण अथवा लेखन से फोकस डालने में लिप्त दिखाई देते है।

अपनी कार्यकुशलता का महिमा मंडन करना धीरे धीरे इनकी आदत का हिस्सा बनता जाता है।सामाजिक सरोकार और जनसरोकार से लेना देना वही तक जब तक लुपण़ीचुपड़ी बातों सुनते हैं और पीछे लगते है। आज समाज के बड़े ठेकेदारों हो अथवा समाज के नेता या फ़िर साहित्य/कला अथवा युवा पीढ़ी। सब बड़ी बड़ी  लच्छेदार बातों से

कुछ ही पल में पोस्टरो में सज जाना चाहते है। यदि समाज, परिवार,देश के लिए जिम्मेदारी निभाने का काम दे दिया जाए उस समय इनके पास समय नही या दूसरा आरोप मढ़ते हुए यह काम  तो सरकार का है । पड़ोसी ने नही किया मैं क्यूं करु इत्यादि दलीलें या फिर आरोप/दोषारोपण। युवा पीढ़ी अथवा समाज के प्रतिनिधित्व बुद्धिजीवी वर्ग बिना   श्रम के, बिना दूसरो से जुड़ाव रखें अपनी डफ़ली में मसरुफ़, बिना अनुशासन, विवेकहीन, गपशप, दिखावा आदि शामिल हैं।

इसका महत्त्वपूर्ण कारण संस्कार और संस्कृति की अवहेलना। आखिर  एक लेखक किसके लिए लिखता है? क्यों लिखता है? महज़ अपने लिए अथवा दिखाने के लिए। हर क्षेत्र में एक बड़ी बाढ़ को देखा जा सकता है जिसके प्रभाव में बहुतों को बहते भी देख सकते है। आज के प्रतिस्पर्धा और बाजारवाद का असर भी  एक अन्य कारण  हो सकता है।

हर कोई भी किसी अन्य के बारे में ख़ामोश है। जैसे उसका कद छोटा हो जायेगा। आज से साठ सालों के अन्तराल में हर क्षेत्रों में बड़ा बदलाव देखा जा सकता है। लेकिन समय सीमा, उम्र सीमा, स्थान सीमा वही पर स्थिर है। ऐसे में वैज्ञानिक विकास और बाजारवाद ने एक तरह से गांव,देश की दूरियों को वेशक कम किया है लेकिन मानवीकर का बड़ी तेजी से हास हुआ है जिस कारण यह अंतर बढ़ती दूरी को मनुष्य सीधे तौर पर देखने की चेष्टा नहीं की और गिरफ्त में जकडता ही गया । जिसका सीधा असर उसकी चेतना पर पड़ना स्वाभाविक था।आज समाज, परिवार अपने  स्वार्थ, लोलुपता , बाजारवाद के आकर्षण में लिप्त अपने से ही संवेदनशील नहीं रहा और बुद्धि हावी,चतुर ,ठगी मारती रही। आज नैतिक शिक्षा, संस्कृति, परंपरा, सेवा, सहानुभूति, सहयोग, समर्पण आदि मानवीय पक्ष लुप्त होने के कारण एक अलगाव और मनमाना ढंग विकसित हुआ जिस कारण पूरा परिदृश्य ही बदल गया और आज की पीढ़ी और आज के समाज पर गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। इतिहास गवाह है जब जब धर्म, संस्कृति, संस्कार में जड़ता कुरुपता और प्रकृति में सामंजस्य स्थापित नहीं हुआ तब तब समाज परिवार,देश में विखंडन की संभावना दिनों दिन बढ़ती जा रही है।

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