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किस्से कहानियों से दूर होते बच्चे, पुराने समय में नैतिक शिक्षा का सशक्त माध्यम थी कहानियाँ

किस्से कहानियों से दूर होते बच्चे, पुराने समय में नैतिक शिक्षा का सशक्त माध्यम थी कहानियाँ

आलेख - किस्से कहानियों से दूर होते बच्चे, पुराने समय में नैतिक शिक्षा का सशक्त माध्यम थी कहानियाँ

एक समय था जब बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी, मम्मी-पापा या घर के बड़े सदस्यों से कहानी सुना करते थे l उन कहानियों के साथ हम एक काल्पनिक यात्रा के सफर में निकल पड़ते थे l उन कहानियों में राजा-रानी, बीरबल की बुद्धि, तेनालीराम की चतुराई, पांडव कौरवों के धर्म अधर्म से संवंधित ज्ञान, विक्रमादित्य का न्याय आदि कहानी हमें न केवल मनोरंजन प्रदान करती थी वल्कि यह हमारे बुद्धिकौशलपूर्ण, जीवनोपयोगी और कलात्मक शैली प्रदान करती थी l बच्चे कहानी इतनी रूचि से सुनते थे जैसे इन कहानीयों से उनका कोई पुराना नाता हो, कहानी सुनने से बहुत सी सीख एवं कौशल स्वतः ही हासिल कर लेते थे l अबोध बाल मन में कहानी के पात्र एवं उनके द्वारा किये गए कार्य ऐसे बैठ जाते थे यानि यह घटना स्वयं के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा रहा हो l इन कहानियों में बच्चा अपने आस-पास, परिवेश से सम्बंधित कई सीख सीखता है l कहानीकार का प्रस्तुतिकरण इस तरह होता था मानो यह कहानी उनके सामने ही घटित हुई हो l श्रोता कहानी के अंतिम हिस्से को छूने तक अपने अन्दर बहुत से ज्ञान समेट लेता है l कहानी, किस्सा बच्चों के लिए एक मनोरंजनात्मक साधन के साथ-साथ उनका मानसिक, तार्किक, सामाजिक एवं भावनात्मक, नैतिक विकास, सूझबूझ एवं साहसी बनाने में सक्षम होती है l पुरानी कहानियों के लिए पंचतंत्र की कहानी को ही देख लीजिये ये कहानियाँ आज भी उतनी ही सजीव एवं वास्तविक लगती है जितनी की उस समय रही होगी l 

वर्तमान परिवेश में काफी बदलाब हुआ है, परन्तु कहानियों का स्थान वही है जो पहले था l इसे एक माध्यम से दूसरे माध्यम तक पहुँचने के तरीको में भले ही बदलाब आ जाये लेकिन किस्से-कहानियों की छबि लोगो से मन में बहुत ही गहरी से पैठ करी हुई है l आज मोबाइल एवं ऑनलाइन, नए डिवाइस, लैपटॉप, कंप्यूटर के चलन से मौखिक सुने जाने वाली का चलन बड़ी तेजी से कम हुआ l पुराने समय जैसे दादी-नानी की कहानियों का दौर भी काफी प्रभावित हुआ है, आज मोबाइल डिवाइस एवं कंप्यूटर से कहानी किस्सों को बच्चे आसानी से देख व सुना जा सकता है, परन्तु कहानियों को अपने आमने-सामने सुनने में जो आनंद आता है, और वास्तविकता से जुड़ने का मौका मिलता है शायद कृत्रिम डिवाइस के नहीं आता है l किसी कहानी को सुनना में बच्चे सुनने वाले की सामाजिक एवं भावनात्नक रूप से जुड़ने का अवसर मिलता है l 

स्थानीय कहानियों एवं किस्से उस क्षेत्र में घटित घटनाओं एवं वहाँ की विरासत पर आधारित होती है l स्थान एवं परिवेश के अनुसार स्थानीय भाषाओं तुकबंदी, आवभाव, जीवनशैली को नजदीक से जाने और समझने मौक़ा मिलता है l कहानी बच्चों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डालती है l बच्चों के सामाजिक एवं भावनात्मक विकास के लिए कहानी एक कारगर उपाय के रूप में कार्य करता है l  कहानी हमें जीवन के कुछ महत्वपूर्ण सबक सीखने में हमारी मदद करती है l लेकिन तेजी से बढती टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन के इस पहलू पर वार किया है l आज आधुनिकता के चलते हमारा सामाजिक ढ़ांचा में काफी बदलाव आ गया है l संयुक्त परिवार में घर का कोई बड़े या बुजुर्ग सदस्य ऐसे कहानी- किस्सों और बच्चों का पालन पोषण की जिम्मेदारी सभाल लेते थे l घर में बच्चों का पालन पोषण कैसे हो जाता था माता-पिता को ज्यादा संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं होती थी; वर्तमान परिवेश में अधिकतर परिवार एकल हो गए है अपने काज के चलते ये एकल परिवार बच्चों को समय नहीं दे पाते है तो बच्चों को कहानी सुनाएगा कौन ?

आज की पीढ़ी में जब हमने कहानी किस्सों का बीजारोपण ही नहीं किया है तो ये आगामी पीढ़ी तक कैसे ले जाएगी! कहानी किस्सों का दौर एक डिजिटल डिब्बा तक सिमटकर रह जायेगा, कहानी एक सुनने की चीज बनकर रह जाएगी, उसे समझने स्वयं जीने एवं संवेदनाओं को महसूस करना एक सपना बन जाएगा l आजकल हमारे देश में इंग्लिश का चलन बढ़ा है बच्चे भी इंग्लिश मीडियम में पढ़ते है, जाहिर सी बात है कि ये अपनी मूल भाषा का कम प्रयोग कर पाते होंगे l ऐसे में ये पारंपरिक कहानियाँ अपने मूल भाषा से जुड़े रहने का एक बड़ा और सशक्त सेतु निर्माण करती है l 

आज के परिवेश में कहानियों का चलन कम जरुर हुआ है, मौखिक सुनना या पढ़ने से हटकर यह मोबाइल कंप्यूटर ने इसका स्थान ले लिया है l ये सब कहानियों के माध्यम में परिवर्तन हुए है लेकिन कहानी का प्रभाव आज भी उतना ही है जितना पहले था l बच्चों को सही मायने में हमारी संस्कृति एवं नैतिकता से जोड़े रखने के लिए यह प्राचीन एवं सर्वमानित माध्यम को चुनकर आगे बढ़ाना होगा जिससे बच्चों में जीवनोपयोगी ज्ञान व सीख का संचार किया जा सके l   

लेखक
श्याम कुमार कोलारे 
सामाजिक कार्यकर्त्ता, छिन्दवाड़ा (मध्यप्रदेश)
मोबाइल – 9893573770
shyamkolare@gmail.com

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